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________________ 6955 5 55 55 5955 5 5 5 5 5955 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 2. During that period of time there was a city called Moka. Description (of the city). In the north-eastern direction outside the city there was a Chaitya (temple complex) called Nandan. Description (of the Chaitya). During that period of time Shraman Bhagavan Mahavir arrived there. People came out (to attend ). ( After listening to Bhagavan's sermon) the assembly dispersed. चमरेन्द्र की ऋद्धि-विषयक प्रश्न CHAMARENDRA'S OPULENCE ३ . [ प्र. ] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स दोच्चे अंतेवासी अग्गिभूई नामं अणगारे गोतमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी- चमरे णं भंते ! असुरिंदे असुरराया महिड्डी ? केमहज्जुतीए ? केमहाबले ? केमहायसे ? केमहासोक्खे ? केमहाणुभागे ? केवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए ? [उ. ] गोयमा ! चमरे णं असुरिंदे असुरराया महिड्डीए जाव महाणुभागे । से णं तत्थ चोत्तीसाए भवणावाससयसहस्साणं, चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं जाव विहरइ । एमडीए जाव एमहाणुभागे । एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए - से जहानामए जुवती जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेहेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्तासिया, एवामेव गोयमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया वेव्यसमुग्धाणं समोहण्णति, समोहणित्ता संखेज्जाई जोअणाई दंडं निसिरति, तं जहा - रयणाणं जाव रिट्ठाणं, अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ, परिसाडित्ता अहासुहुमे पोग्गले परियाएइ, परियाइत्ता दोच्चं पि वेव्वियसमुग्धाएणं समोहण्णति, समोहणित्ता पभू णं गोयमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइण्णं वितिकिण्णं उवत्थडं संथडं फुडं अवगाढावगाढं करेत्तए । अदुत्तरं च णं गोयमा ! पभू चमरे असुरिंदे असुरराया तिरियमसंखेज्जे दीव - समुद्दे बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य आइण्णे वितिकिण्णे उवत्थडे संथडे फुडे अवगाढावगाढे करेत्तए । एस णं गोयमा ! चमरस्स असुर्रिदस्स असुररण्णो अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए; णो चेव णं संपत्ती विकुव्विंसु वा, विकुव्वति वा, विकुव्विस्सति वा । ३. [ प्र. ] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के द्वितीय अन्तेवासी (शिष्य) अग्निभूति नामक अनगार ( गणधर ) जिनका गौतम गोत्र था, जो सात हाथ ऊँचे थे, यावत् ( औपपातिकसूत्र - कथित विशेषणों से युक्त ) ( भगवान की) पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले“भगवन् ! असुरों का इन्द्र असुरराज चमरेन्द्र कितनी महान् ऋद्धि वाला है? कितनी महान् घुतिकान्ति वाला है? कितने महान् बल से सम्पन्न है ? कितना महान् यशस्वी है? कितने महान् सुखों व कितने महान् प्रभाव वाला है और वह कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ?” [ उ. ] गौतम ! असुरों का इन्द्र असुरराज चमर महान् ऋद्धि वाला है यावत् महाप्रभावशाली है। वह चमरचंचा राजधानी में चौंतीस लाख भवनावासों पर, चौंसठ हजार सामानिक देवों पर और तेतीस तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक (341) Jain Education International फफफफफफफफफफ Third Shatak: First Lesson For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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