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[2] The same should be repeated for all intervening spaces. २०. जहा रयणप्पभाए पुढवीए वत्तव्वया भणिया एवं जाव अहेसत्तमाए ।
२०. जैसे रत्नप्रभा पृथ्वी के विषय में कहा, वैसे ही यावत् नीचे सातवीं पृथ्वी तक कहना चाहिए ।
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20. What has been said about Ratnaprabha prithvi should be repeated for all the lower prithvis (hells) up to the seventh one.
२१. जंबुदीवाइया दीवा, लवणसमुद्दाइया समुद्दा एवं सोहम्मे कप्पे जाव ईसिप भारा - पुढवीए । एए सव्वे वि असंखेज्जइभागं फुसति, सेसा पडिसेहियव्या ।
5 हैं और शेष सब धर्मास्तिकाय के असंख्येय भाग का स्पर्श करते हैं ।
२२. एवं अधम्मत्थिकाए। एवं लोयागासे वि। गाहा–पुढवोदही घण तणू कप्पा गेवेज्जऽणुत्तरा सिद्धी । संखेज्जइभागं अंतरेसु सेसा असंखेज्जा ॥१॥
॥ बितीय सए : दसमो उद्देसो समत्तो ॥ ॥ बिइयं सयं समत्तं ॥
२१. तथा जम्बूद्वीप आदि द्वीप और लवणसमुद्र आदि समुद्र सौधर्मकल्प से लेकर ईषत्प्राग्भारा
पृथ्वी तक ये सभी धर्मास्तिकाय के असंख्येय भाग को स्पर्श करते हैं। शेष भागों की स्पर्शना का निषेध करना चाहिए।
२२. जिस तरह धर्मास्तिकाय की स्पर्शना कही, उसी तरह अधर्मास्तिकाय और लोकाकाशास्तिकाय की स्पर्शना के विषय में भी कहना चाहिए ।
(गाथा का अर्थ) पृथ्वी, घनोदधि, घनवात, तनुवात, कल्प, ग्रैवेयक, अनुत्तर, सिद्धि ( ईषत्प्राग्भारा
पृथ्वी) तथा सात अवकाशान्तर, इनमें से अवकाशान्तर तो धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग का स्पर्श करते
21. Also, Jambu dveep and other continents, Lavan samudra and
other oceans, and Saudharma kalp and beyond up to Ishatpragbhara
prithvi (the abode of Siddhas), all these touch innumerable fraction of Dharmastikaya (motion entity). Touching of other fractions should be negated.
22. What has been said about touch of Dharmastikaya (motion entity )
should also be repeated for the touch of Adharmastikaya (inertia entity)
and Lokakashastikaya (occupied space).
Verse— Out of Prithvi, Ghanodadhi, Ghanavaat, Tanuvaat, Kalp, 5 Graiveyak, Anuttar, Siddhi (Ishatpragbhara prithvi) and seven Avakashantars, the Avakashantars touch countable fraction of
Bhagavati Sutra (1)
भगवतीसूत्र (१)
(338)
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