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[उ. ] जहा रयणप्पभा (सु. १७) तहा घणोदहि-घणवात-तणुवाया वि।
१८. [प्र. ] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी का घनोदधि, धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श करता है; यावत् समग्र धर्मास्तिकाय को स्पर्श करता है ? इत्यादि पृच्छा। __ [उ. ] गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी के लिए कहा गया है, उसी प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी के घनोदधि के विषय में समझना चाहिए और उसी तरह घनवात और तनुवात के विषय में भी समझना चाहिए। ___18. [Q.] Bhante ! Does the Ghanodadhi (section of dense water) of this Ratnaprabha prithvi (the first hell) touch countable fraction... and so on up to... the whole of Dharmastikaya (motion entity)? ___ [Ans.] Gautam ! As has been stated about Ratnaprabha prithvi (the first hell) so should be taken for the Ghanodadhi (section of dense water) of Ratnaprabha prithvi. The same should also be taken for Ghanavaat (dense air) and Tanuvaat (rarefied air).
१९. [प्र. १ ] इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए ओवासंतरे धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइ भागं फुसति, असंखेजइभागं फुसइ जाव (सु. १७) सव्वं फुसइ।
[उ. ] गोयमा ! संखेज्जइभागं फुसइ, णो असंखेज्जइभागं फुसइ, नोसंखेज्जे, नो असंखेज्जे, नो सब्बं फुसइ।
१९. [प्र. १] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का अवकाशान्तर क्या धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श करता है, अथवा असंख्येय भाग को स्पर्श करता है। यावत् सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय को स्पर्श करता है?
[उ. ] गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का अवकाशान्तर, धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श करता है, किन्तु असंख्येय भाग को, संख्येय भागों को, असंख्येय भागों को तथा सम्पूर्ण धर्मास्तिकाय को स्पर्श नहीं करता। ___19. [Q. 1] Bhante ! Does the avakashantar (intervening space) of this Ratnaprabha prithvi (the first hell) touch countable fraction, or innumerable fraction... and so on up to... the whole of Dharmastikaya (motion entity)?
(Ans.] Gautam ! The avakashantar of this Ratnaprabha prithvi (the first hell) touches countable fraction of Dharmastikaya (motion entity) but not innumerable fraction, or countable fractions, or innumerable fractions, or the whole of Dharmastikaya (motion entity).
[ २ ] ओवासंतराइं सब्बाइं जहा रयणप्पभाए। [ २ ] इसी तरह समस्त अवकाशान्तरों के सम्बन्ध में कहना चाहिए।
| द्वितीय शतक : दशम उद्देशक
(337)
Second Shatak : Tenth Lesson
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