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९. [ प्र. १ ] भगवन् ! उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम वाला जीव आत्मभाव 5 (अपने उत्थानादि क्रियाओं) से जीवभाव (चैतन्य) को प्रकट करता है; क्या ऐसा कहा जा सकता है ?
9. [Q. 1] Bhante ! Can it be stated that a soul (jiva ) endowed with inclination to rise (utthaan ), action (karma); strength (bal), potency (virya ) and self-exertion (purushahar-parakram) asserts its state of life (jiva bhaava or chetana) through self-expression (atma-bhaava or the intrinsic capacity of aforesaid activities)?
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[उ. ] हाँ, गौतम ! उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम से युक्त जीव आत्मभाव से 5 जीवभाव को प्रकट करता है, ऐसा कहा जा सकता है।
[Ans.] Yes, Gautam ! It can be stated that a soul (jiva ) endowed with inclination to rise (utthaan), ... and so on up to... asserts its state of life (jiva bhaava or chetana) through self-expression (atma-bhaava or the aforesaid activities).
[प्र. २ ] से केणट्टेणं जाव वत्तव्वं सिया ?
[उ.] गोयमा ! जीवे णं अनंताणं आभिणिबोहियनाणपज्जवाणं एवं सुयनाणपज्जवाणं ओहिनाणपज्जवाणं मणपज्जवनाणपज्जवाणं केवलनाणपज्जवाणं मइअण्णाणपज्जवाणं सुयअण्णाणपज्जवाणं विभंगनाणपज्जवाणं चक्खुदंसणपज्जवाणं अचक्खुदंसणपज्जवाणं ओहिदंसणपज्जवाणं केवलदंसणपज्जवाणं
उवओगं गच्छइ । उवओगलक्खणे णं जीवे । से तेणट्टेणं एवं बुच्चइ - गोयमा ! जीवे णं सउट्ठाणे जाव वत्तव्यं सिया ।
[प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा है कि तथारूप जीव आत्मभाव से जीवभाव को प्रदर्शित करता है, ऐसा कहा जा सकता है ?
[ उ.] गौतम ! जीव आभिनिबोधिकज्ञान के अनन्त पर्यायों, श्रुतज्ञान
के अनन्त पर्यायों, मनः पर्यवज्ञान के अनन्त पर्यायों एवं केवलज्ञान के अनन्त पर्यायों के तथा मति
अज्ञान, श्रुत- अज्ञान, विभंग (अवधि) अज्ञान के अनन्त पर्यायों के एवं चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन,
अवधिदर्शन और केवलदर्शन के अनन्त पर्यायों के उपयोग को प्राप्त करता है, क्योंकि जीव का लक्षण
अनन्त पर्यायों, अवधिज्ञान
उपयोग है। इसी कारण से, हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार- फ
पराक्रम वाला जीव, आत्मभाव से जीवभाव (चैतन्य स्वरूप) को प्रकट करता है।
[Ans.] Gautam ! A soul acquires the intent of application of infinite modes (paryayas) of Abhinibodhik jnana or Mati-jnana (sensory
द्वितीय शतक : दशम उद्देशक
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[Q. 2] Bhante ! Why is it said that it can be stated that a soul (jiva)
endowed with inclination to rise... and so on up to... asserts its state of 5 life through self-expression' ?
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Second Shatak: Tenth Lesson
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