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३३२
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२७९
३४०
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२९२
३६२
55555555555555555555555555555555558 # द्वितीय शतक : तृतीय उद्देशक : पृथ्वी २७७-२७८ आकाशास्तिकाय के भेद-प्रभेद म सप्त नरकपृथ्वियाँ सम्बन्धित वर्णन
२७७
धर्मास्तिकाय आदि का प्रमाण
धर्मास्तिकाय आदि की स्पर्शना द्वितीय शतक : चतुर्थ उद्देशक : इन्द्रिय २७९-२८१
तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक : इन्द्रियों के संस्थानादि का वर्णन
विकुर्वणा
३४०-४०२ द्वितीय शतक : पंचम उद्देशक : निर्ग्रन्थ २८२-३१० तृतीय शतक की संग्रहणी गाथा निर्ग्रन्थदेव-परिचारणा-सम्बन्धी प्ररूपणा २८२
उपोद्घात उदकगर्भ आदि की कालस्थिति।
२८४
चमरेन्द्र की ऋद्धि विषयक प्रश्न मैथुनप्रत्ययिक सन्तानोत्पत्ति का निरूपण २८७
वैरोचनेन्द्र बलि की ऋद्धि तुंगिका के श्रमणोपासकों का जीवन २८९
नागकुमारेन्द्र धरण आदि की ऋद्धि ३५३ पापित्यीय स्थविरों का पदार्पण
शक्रेन्द्र आदि देवों की ऋद्धि
३५७ श्रमणोपासक स्थविरों की सेवा में
२९४
देववर्ग की ऋद्धि श्रमणोपासकों के प्रश्न : स्थविरों के उत्तर २९७
ईशानेन्द्र का वन्दनार्थ आगमन
३६८ राजगृह में गौतम स्वामी का भिक्षाचर्यार्थ पर्यटन ३०० कूटाकारशाला दृष्टान्त
३६९ स्थविरों के विषय में जिज्ञासा
३०२
ईशानेन्द्र का पूर्वभव : तामली तापस ३७० पर्युपासना का फल
३०६ प्रव्रज्या का नाम 'प्राणामा' क्यों ?
३७७ 卐 राजगृह का गर्म जल स्रोत ३०८ पादपोपगमन अनशन
३७८ बलिचंचावासी देवगण द्वारा प्रार्थना
३८० द्वितीय शतक : छठा उद्देशक : भाषा ३११-३१३ ईशानकल्प में उत्पत्ति
३८५ भाषा का स्वरूप
३११
असरों द्वारा तामली के शव की कदर्थना
ईशानेन्द्र का कोप द्वितीय शतक : सप्तम उद्देशक : देव ३१४-३१६
असुरों द्वारा क्षमा याचना देवों के प्रकार
३१४ ईशानेन्द्र की स्थिति
शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र के विमानों की ऊँचाई द्वितीय शतक : अष्टम उद्देशक : सभा ३१७-३२१ दोनों इन्द्रों का शिष्टाचार चमरेन्द्र की सुधर्मा सभा ३१७ सनत्कुमारेन्द्र की भवसिद्धिकता
३९८
प्रथम उद्देशक की उपसंहार गाथाएँ ४०१ द्वितीय शतक : नवम उद्देशक : द्वीप (समयक्षेत्र)
३२२-३२३ तृतीय शतक : द्वितीय उद्देशक : चमर ४०३-४४० समयक्षेत्र-सम्बन्धी प्ररूपणा
उपोद्घात
असुरकुमार देवों का स्थान द्वितीय शतक : दशम उद्देशक :
असुरकुमारों की गति विषयक प्रश्न अस्तिकाय
३२४-३३९
चमरेन्द्र का पूर्वभव पंच अस्तिकाय
३२४
चमरेन्द्र द्वारा सौधर्मकल्प में उत्पात धर्मास्तिकायादि के स्वरूप का निश्चय
शक्रेन्द्र का चिन्तन उत्थानादि युक्त जीव द्वार
३३० फैंके हुए पुद्गल को पकड़ने की देवशक्ति । ४३०
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