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________________ २०४ दसवाँ : उपयोग द्वार १३३ कालस्यवेषिपुत्र का समाधान ग्यारहवाँ : लेश्या द्वार १३४ चारों में अप्रत्याख्यान क्रिया : समान रूप से २१० ॥ भवनपतियों की स्थिति आदि दस द्वार १३४ आधाकर्म आहारसेवन का फल २११ एकेन्द्रियों की स्थिति आदि दस द्वार १३५ स्थिर-अस्थिरादि निरूपण विकलेन्द्रियों के दस द्वार १३७ तिर्यंच पंचेन्द्रियों के दस द्वार १३७ प्रथम शतक : दशम उद्देशक : चलना २१५-२२६ मनुष्यों के दस द्वार १३८ परमाणु के विषय में अन्यतीर्थिक मत २१५ वाणव्यन्तरों आदि के दस द्वार १३८ स्व-समय पक्ष २१८ प्रथम शतक : छटा उद्देशक : यावन्त १४१-१५८ ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी क्रिया २२३ नरकादि गतियों में जीवों का उत्पाद-विरह काल २२५ सूर्य के उदयास्त सम्बन्धी प्रश्न १४१ लोकान्त--अलोकान्तादि स्पर्श १४३ द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक २२७-२७४ अठारह पापस्थान क्रिया-स्पर्श प्ररूपणा १४४ रोह अनगार का वर्णन प्राथमिक परिचय १४८ अष्टविध लोकस्थिति : सदृष्टान्त निरूपण १५३ द्वितीय शतक के दस उद्देशकों का नाम-निरूपण २२७ जीव और पुद्गलों का सम्बन्ध १५५ श्वासोच्छ्वास सूक्ष्म स्नेहकाय १५७ एकेन्द्रियादि जीवों में श्वासोच्छ्वास वायुकाय के श्वासोच्छ्वास प्रथम शतक : सप्तम उद्देशक : मृतादी निर्ग्रन्थों के भवभ्रमण नैरयिक १५९-१७६ स्कन्दक परिव्राजक २३६ चौबीस दण्डकों के आहार-सम्बन्धी प्ररूपणा १५९ । स्कन्दक का भगवान की सेवा में आगमन २४० जीवों की विग्रह-अविग्रह गति १६४ गौतम स्वामी द्वारा स्कन्दक का स्वागत २४२ देव का च्यवनानन्तर आयुष्य प्रतिसंवेदन १६६ भगवान द्वारा स्कन्दक का समाधान २४६ गर्भगत जीव-सम्बन्धी विचार लोक : सान्त या अनन्त २४७ जीव : सान्त या अनन्त प्रथम शतक : अष्टम उद्देशक : बाल १७७-१९२ सिद्धि-विषयक प्रश्न बाल, पण्डित आदि का आयुष्यबन्ध बालमरण-पण्डितमरण मृगघातकादि को लगने वाली क्रिया १८१ स्कन्दक द्वारा निर्ग्रन्थ प्रव्रज्या दो योद्धाओं में जय-पराजय का कारण १८८ सवीर्यत्व-अवीर्यत्व की प्ररूपणा १८९ स्कन्दक द्वारा तपश्चरण स्कन्दक अनगार का समाधिमरण प्रथम शतक : नवम उद्देशक : गुरुक १९३-२१४ स्कन्दक की गति विषय में कथन जीवों के गुरुत्व--लघुत्वादि की प्ररूपणा १९३ द्वितीय शतक : द्वितीय उद्देशक : पदार्थों के गुरुत्व-लघुत्व आदि की प्ररूपणा १९४ श्रमणनिर्ग्रन्थों के लिए प्रशस्त २०० समुद्घात आयुष्यबन्ध के सम्बन्ध में अन्यतीर्थिक २०२ समुद्घात : तत्सम्बन्धी विश्लेषण २७५ भकभक स २२७ १७७ B5555555555555) (29) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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