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अनुक्रमणिका
३-४९
प्रथम शतक : प्रथम उद्देशक मंगलाचरण प्रथम शतक : विषय-सूची राजगृह में पदार्पण गणधर इन्द्रभूति चलन आदि से सम्बन्धित प्रश्न चौबीस दण्डकगत स्थिति [नैरयिक चर्चा]
देव (असुरकुमार) चर्चा 卐 नागकुमार चर्चा
पृथ्वीकाय आदि पाँच स्थावर द्वीन्द्रियादि त्रस-चर्चा मनुष्य एवं देवादि विषयक चर्चा जीवों की आरंभ विषयक चर्चा सलेश्य जीवों में आरंभ प्ररूपणा भव की अपेक्षा से ज्ञानादिक चर्चा असंवुड-संवुड की सिद्धता
असंयत जीव की देवगति विषयक चर्चा __वाणव्यन्तर देवलोक का स्वरूप
प्रथम शतक : तृतीय उद्देशक : कांक्षा-प्रदोष कांक्षामोहनीय कर्म-सम्बन्धी षड्वार कांक्षामोहनीय वेदन आराधक-स्वरूप अस्तित्व-नास्तित्व परिणमन कांक्षामोहनीय कर्मबन्ध के कारण कांक्षामोहनीय की उदीरणा, गर्दा आदि नैरयिकादि में कांक्षामोहनीय श्रमणों के कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन
४०
卐555555555555555555555555555555555555555555555558
१०४
प्रथम शतक : चतुर्थ उद्देशक : (कर्म-) प्रकृति
१०४-११५ कर्म-प्रकृतियाँ
१०४ उपस्थान-उपक्रमणादि प्ररूपणा कतकर्म भोगे बिना मोक्ष नहीं पुद्गल स्कन्ध और जीव के सम्बन्ध में
शाश्वत प्ररूपणा छद्मस्थ मनुष्य की मुक्ति
११२ केवली की मुक्ति
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४१
१०९
४६
१११
११४
११६ ११९
११९
प्रथम शतक : द्वितीय उद्देशक : दुःख ५०-८१ जीव के स्वकृत-दुःखवेदन आयु-वेदन चर्चा चौबीस दंडक में समानत्व चर्चा [नैरयिक] असुरकुमारादि की समानत्व चर्चा पृथ्वीकायादि समानत्व चर्चा मनुष्य-देव समानत्व चर्चा चौबीस दण्डकों में लेश्या विचार संसार-संस्थानकाल अन्तक्रिया-सम्बन्धी चर्चा असंयत भव्य द्रव्यदेव का उपपात असंज्ञी आयुष्य
७९
प्रथम शतक : पंचम उद्देशक : पृथ्वी ११६-१४० नरकावास संख्या अर्थाधिकार दस द्वार प्रथम : स्थिति-स्थान द्वार द्वितीय : अवगाहना द्वार तृतीय : शरीर द्वार
१२५ चौथा : संहनन द्वार
१२६ पाँचवाँ : संस्थान द्वार
१२७ छठा : लेश्या द्वार सातवाँ : दृष्टि द्वार
१२९ आठवाँ : ज्ञान द्वार
१३० नौवाँ : योग द्वार
१३२
७०
१२९
(28)
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