________________
895
卐55555555555))))))))))))
as $ $$ $$$$$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 $ $$$$$$$$$
[प्र. ८ ] से णं भंते ! अकिरिया किंफला ? [उ. ] सिद्धिपज्जवसाणफला पण्णत्ता गोयमा ! गाहा-सवणे णाणे य विण्णाणे पच्चक्खाणे य संजमे।
अणण्हये तवे चेव वोदाणे अकिरिया सिद्धी॥१॥ [प्र. ८ ] भगवन् ! उस अक्रिया का क्या फल है ?
[८] गौतम ! अक्रिया का अन्तिम फल सिद्धि है। (अर्थात्-प्रवृत्ति निरोध होने पर अन्त में मुक्ति प्राप्त होती है।)
(गाथा का अर्थ)-(१) (पर्युपासना का प्रथम फल) श्रवण, (२) (श्रवण का फल) ज्ञान, ) (ज्ञान का फल) विज्ञान, (४) (विज्ञान का फल) प्रत्याख्यान, (५) (प्रत्याख्यान का फल) संयम, (६) (संयम का फल) अनास्रवत्व, (७) (अनास्रवत्व का फल) तप, (८) (तप का फल) व्यवदान, (९) (व्यवदान का फल) अक्रिया, और (१०) (अक्रिया का फल) सिद्धि है।
[Q.8] Bhante ! What is the fruit of akriya ?
[Ans.] Gautam ! The ultimate fruit of akriya is Siddhi (liberation). (In other words complete cessation of inclination and indulgence in all activity ultimately leads to liberation.)
Verse-(1) (The first fruit of paryupasana is) shravan (listening to the sermon or scriptures), (2) (fruit of shravan) jnana (acquisition of .. knowledge), (3) (fruit of jnana) vijnana (capacity to discern), (4) (fruit of
vijnana) pratyakhyan (renunciation), (5) (fruit of pratyakhyan) samyam (ascetic-discipline), (6) (fruit of samyam) anasrava (blockage of inflow of harmas), (7) (fruit of anasrava) tap (austerities), (8) (fruit of tap) vyavadaan (shedding of karmas), (9) (fruit of vyavadaan) akriya 4 (cessation of activity), and (10) (fruit of akriya) Siddhi (liberation). राजगृह का गर्म जल स्रोत HOT WATER STREAMS OF RAJAGRIHA
२७. [प्र. ] अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति भासेंति पण्णवेंति, परूवेंति-एवं खलु रायगिहस्स नगरस्स बहिया वेभारस्स पव्वयस्स अहे एत्थ णं महं हरए अप्पे (अघे) पण्णत्ते, अणेगाई,
जोयणाई-आयाम-विक्खंभेणं नाणादुमसंड-मंडिउद्देसे सस्सिरीए जाव पडिरूवे। तत्थ णं बहवे ओराला ॐ बलाहया संसेयंति सम्मुच्छंति वासंति तव्यतिरित्ते य णं सया समियं उसिणे उसिणे आउकाए अभिनिस्सवइ। से कहमेयं भंते ! एवं ?
[उ. ] गोयमा ! जं णं ते अण्णउत्थिया एयमाइक्खंति जाव जे ते एवं परूवेंति मिच्छं ते एवमाइक्खंति जाव सव्वं नेयव्वं। अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि भासेमि पनवेमि परूवेमि-एवं खलु रायगिहस्स # नगरस्स बहिया वेभारस्स पव्वयस्स अदूरसामंते एत्थ णं महातवोवतीरप्पभवे नामं पासवणे पण्णत्ते; पंच
| भगवतीसूत्र (१)
(308)
Bhagavati Sutra (1)
9415555)))))555555555555555555
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org