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[प्र. ३ ] भगवन् ! उस ज्ञान का क्या फल है? [उ. ] गौतम ! ज्ञान का फल विज्ञान (हेय और उपादेय का विवेक) की प्राप्ति है। [Q.3] Bhante ! What is the fruit of jnana ?
[Ans.) The fruit of jnana is vijnana (capacity to discern between acceptable and rejectable).
[प्र. ४ ] से णं भंते ! विण्णाणे किंफले ? [उ. ] पच्चक्खाणफले। [प्र. ४ ] भगवन् ! उस विज्ञान का क्या फल है ? [उ. ] गौतम ! विज्ञान का फल प्रत्याख्यान है। [Q. 4] Bhante ! What is the fruit of vijnana ? [Ans.] The fruit of vijnana is pratyakhyan (to renounce sinful activity). [प्र. ५ ] से णं भंते ! पच्चक्खाणे किंफले ? [उ. ] संजमफले। [प्र. ५ ] भगवन् ! प्रत्याख्यान का क्या फल है? [उ. ] गौतम ! प्रत्याख्यान का फल संयम है। [Q.5] Bhante ! What is the fruit of pratyakhyan ? । [Ans.] The fruit of pratyakhyan is samyam (discipline or restraint). [प्र. ६ ] से णं भंते ! संजमे किंफले ? [उ.] अणण्हयफले। [प्र. ६ ] भगवन् ! संयम का क्या फल है? [उ. ] गौतम ! संयम का फल अनास्रवत्व (नवीन कर्मों का निरोध) है। [Q.6] Bhante ! What is the fruit of samyam ? [Ans.] The fruit of samyam is anasrava (blockage of inflow of karmas). [७] एवं अणण्हए तवफले। तवे वोदाणफले। वोदाणे अकिरियाफले।
[७] इसी तरह अनास्रवत्व का फल तप है, तप का फल व्यवदान (कर्मनिर्जरा) है और व्यवदान का फल अक्रिया (प्रवृत्ति का निरोध) है।
[7] In the same way the fruit of anasrava is tap (austerities), that of tap is vyavadaan (shedding of karmas) and that of vyavadaan is akriya (complete cessation of all activity and inclination of mind, speech and body).
द्वितीय शतक : पंचम उद्देशक
(307)
Second Shatak: Fifth Lesson
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