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उत्तर देने में उपयोग वाले हैं या नहीं हैं ? भगवन् ! क्या वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देने में परिज्ञानी (विशिष्ट ज्ञानवान्) हैं, अथवा नहीं हैं कि आर्यो; पूर्वतप से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, तथा पूर्वसंयम से, कर्मिता से और संगिता के कारण देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। यह बात सत्य है, इसलिए हम कहते हैं, किन्तु अपने अहंभाववश नहीं कहते हैं ?''
[Q. 2] (Stating thus Gautam Swami asked--) "Bhante ! Are those Sthavir Bhagavants capable or incapable of giving such answers to those shramanopasaks ? Bhante ! Are those Sthavir Bhagavants genuinely qualified or unqualified to give such answers to those shramanopasaks? And, Bhante ! Are those Sthavir Bhagavants experienced (inclined) or inexperienced to give such answers to those shramanopasaks ? Bhante ! Do those Sthavir Bhagavants have special qualification or ordinary qualification to give such answers to those shramanopasaks that— Noble ones! Gods (Devs) are born in divine realms (Dev-loks) due to purva-tap, purva-samyam, karmita and sangita. We state this because this is the truth and not out of ego.'”
[उ. ३ ] पभू णं गोयमा ! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाइं एयारूवाई वागरणाई वागरेत्तए, णो चेव णं अप्पभू, तह चेव नेयव्वं अविसेसियं जाव पभू समिया आउज्जिया पलिउज्जिया जाव सच्चे णं एसमढे णो चेव णं आयभाववत्तव्ययाए।
[उ. ३ ] हे गौतम ! वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों को इस प्रकार के उत्तर देने में समर्थ हैं, असमर्थ नहीं; (शेष-सब पूर्ववत् जानना) यावत् वे सम्यक् रूप से सम्पन्न (समित) हैं; असम्पन्न नहीं; वे उपयोग वाले हैं, अनुपयोग वाले नहीं; वे विशिष्ट ज्ञानी हैं, सामान्य ज्ञानी नहीं। यह बात सत्य है, इसलिए उन स्थविरों ने कही है, किन्तु अपने अहंभाव के वश होकर नहीं कही।
[Q. 3] Gautam ! Those Sthavir Bhagavants are capable and not incapable of giving such answers to those shramanopasaks. (other points as aforesaid)... and so on up to... genuinely qualified and not unqualified, experienced (inclined) and not inexperienced, and have special qualification and not ordinary qualification. They have stated this because this is the truth and not out of their ego.
[४] अहं पि णं गोयमा ! एवमाइक्खामि भासेमि पण्णवेमि परूवेमि-पुवतवेणं देवा देवलोएसु उववज्जंति, पुव्वसंजमेणं देवा देवलोएसु उववजंति, कम्मियाए देवा देवलोएसु उववजंति, संगियाए देवा देवलोएसु उववज्जंति, पुवतवेणं पुब्बसंजमेणं कम्मियाए संगियाए अज्जो ! देवा देवलोएसु उववज्जंति; सच्चे णं एसमठे, णो चेव णं आयभाववत्तव्वयाए।
[ ४ ] हे गौतम ! मैं भी इसी प्रकार कहता हूँ, भाषण करता हूँ, बताता हूँ और प्ररूपणा करता हूँ कि पूर्वतप के कारण से देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं, पूर्वसंयम के कारण देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं,
द्वितीय शतक : पंचम उद्देशक
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Second Shatak: Fifth Lesson
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