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“भगवन् ! मैं आपसे आज्ञा प्राप्त करके राजगृहनगर में उच्च नीच और मध्यम कुलों में भिक्षाचर्या 5 की विधिपूर्वक भिक्षाटन कर रहा था, उस समय बहुत से लोगों के मुख से इस प्रकार की बातें सुनीं कि तुंगिका नगरी के बाहर पुष्पवतिक नामक उद्यान में पाश्र्वापत्यीय स्थविर भगवन्त पधारे थे, उनसे वहाँ 5 के श्रमणोपासकों ने इस प्रकार के प्रश्न पूछे थे कि 'भगवन् ! संयम का क्या फल है ? और तप का क्या फल है ?' यह सारा वर्णन पहले (सू. १७) की तरह जानना चाहिए; यावत् यह बात सत्य है, इसलिए कही है, किन्तु हमने अहं (आत्म) भाव के वश होकर नहीं कही।"
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"Bhante! Seeking your permission I went to Rajagriha city and, following the prescribed procedure, was collecting alms from low, medium and high caste families. At that time I heard many people talking that Sthavir Bhagavants (senior ascetics) of the lineage of Bhagavan Parshva Naath, had come to Pushpavatik garden outside Tungika city. There some shramanopasaks had asked such questions to them-Bhante! What is 5 5 the outcome of restraint (samyam ) ? Bhante ! What is the outcome of 5 austerities (tap) ?' Aphorism 17 should be repeated here up to—We state this because this is the truth and not out of ego."
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[प्र.२] "तं पभू भंते! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं इमाई एतारूबाई वागरणाई
वागरित्त ? उदाहु अप्पभू ? समिया णं भंते ! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासगाणं इमाई एतारूवाइं
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ॐ वागरणाई बागरित्तए ? उदाहु असमिया ? आउज्जिया णं भंते ! ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं
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इमाई एयारूवाई बागरणाई वागरित्तए ? उदाहु अणाउज्जिया ? पलिउज्जिया णं भंते ! ते थेरा भगवंतो
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सिं समणोवासयाणं इमाई एयारूवाई वागरणाई वागरित्तए ? उदाहु अपलिउज्जिया ? पुब्बतवेणं
5 अज्जो ! देवा देवलोएसु उववज्जंति, पुव्वसंजमेणं. कम्मियाए, संगियाए., पुव्वतवेणं पुव्वसंजमेणं कम्मिए संगियाए अज्जो ! देवा देवलोएसु उववज्जंति। सच्चे णं एसमट्ठे णो चेव णं आयभाववत्तव्ययाए ?"
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25. [1] When Bhagavan Gautam heard people talking thus an interest... and so on up to... curiosity got, triggered and surfaced in his mind. Thereafter collecting required alms following the prescribed procedure, he left Rajagriha city, moved with medium pace taking proper care and came where Shraman Bhagavan Mahavir was seated in Gunashila Chaitya. After critical review (pratikraman) of his movement for alms collection and censure of the faults committed during alms-collection (alochana), he 5 showed the food to Bhagavan. Having done that Shri Gautam Swami submitted to Shraman Bhagavan Mahavir as follows
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[प्र. २] (यों कहकर गौतम स्वामी ने पूछा - ) “भगवन् ! क्या वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों के प्रश्नों के इस प्रकार के उत्तर देने में समर्थ हैं अथवा असमर्थ हैं ? भगवन् ! क्या वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों को ऐसा उत्तर देने में सम्यक् रूप से ज्ञान - सम्पन्न हैं, अथवा असम्पन्न या अनभ्यस्त हैं ? (और) हे भगवन् ! क्या वे स्थविर भगवन्त उन श्रमणोपासकों को ऐसा
Bhagavati Sutra (1)
भगवतीसूत्र (१)
(304)
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