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9 बात नहीं कही है। तो मैं (गौतम) यह (इस जनसमूह की) बात कैसे मान लूँ ? (गौतम स्वामी के मन में ! शंका उठी।)
24. While moving about in Rajagriha city seeking alms, Bhagavan Gautam heard many people talking-"Beloved of gods ! Sthavir Bhagavants (senior ascetics) of the lineage of Bhagavan Parshva Naath, had come to Pushpavatik garden outside Tungika city. Some shramanopasaks of Shraman Bhagavan Mahavir's order had asked such questions to them-Bhante ! What is the outcome of restraint (samyam)? Bhante ! What is the outcome of austerities (tap) ?' Then the Sthavir Bhagavants replied as follows--'O noble ones ! The outcome of restraint (samyam) is anashravata and that of austerities (tap) is vyavadaan. Aphorism 17 should be repeated here up to 'Noble ones! Gods (Devs) are born in divine realms (Dev-loks) due to purva-tap, purva-samyam, karmita and sangita. We state this because this is the truth and not out of 9 ego.” Now why should I (Gautam Swami) believe this statement (by these people)? (This doubt plagued Gautam Swami.)
२५. [१] तए णं से समणे भगवं गोयमे इमीसे कहाए लट्टे समाणे जायसड्ढे जाव , समुप्पनकोतुहल्ले अहपज्जत्तं समुदाणं गेण्हति, २ रायगिहातो नगरातो पडिनिक्खमति, अतुरियं जाव
सोहेमाणे जेणेव गुणसिलाए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, सम. भ. महावीरस्स अदूरसामंते गमणागमणाए पडिक्कमति, एसणमणेसणं आलोएति, भत्तपाणं पडिदंसेति, २ समणं भगवं महावीरं जाव एवं वयासि___"एवं खलु भंते ! अहं तुब्भेहिं अन्भणुण्णाते समाणे रायगिहे नगरे उच्च-नीच-मज्झिमाणि कुलाणि
घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे बहुजणसदं निसामेमि “एवं खलु देवाणुप्पिया ! तुंगियाए नगरीए बहिया पुष्फवईए चेइए पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो समणोवासएहिं इमाई एतारूवाइं पुच्छिता-'संजमे णं भंते ! किंफले ? तवे किंफले ? तं. चेव जाव (सु. १७) सच्च णं एसमठे, णो चेव णं आयभाववत्तव्वयाए।"
२५. [१] इसके पश्चात् श्रमण भगवान गौतम ने लोगों के मुख से यह बात सुनी तो उन्हें श्रद्धाजिज्ञासा उत्पन्न हुई, और उस बात के लिए उनके मन में कुतूहल भी जगा। अतः भिक्षाविधिपूर्वक भिक्षा
लेकर वे राजगृहनगर से बाहर निकले और मध्यम गति से ईर्यासमितिपूर्वक चलते हुए गुणशीलक चैत्य म में जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके पास आये। फिर उनके निकट उपस्थित
होकर गमनागमन सम्बन्धी प्रतिक्रमण किया, भिक्षाचर्या में लगे हुए एषणादोषों की आलोचना की, फिर
लाया हुआ आहार-पानी भगवान को दिखाया। तत्पश्चात् श्री गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर । स्वामी से इस प्रकार निवेदन किया
द्वितीय शतक :पंचम उद्देशक
(303)
Second Shatak: Fifth Lesson
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