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[उ. २ ] (श्रमणोपासकों का प्रश्न सुनकर) उन स्थविरों में से कालिकपुत्र नामक स्थविर ने म श्रमणोपासकों से यों कहा-'आर्यो ! पूर्वतप के कारण देव देवलोक में उत्पन्न होते हैं।'
[उ. ३ ] उनमें से मेहिल (मेधिल) नाम के स्थविर ने इस प्रकार कहा-'आर्यो ! पूर्व-संयम के कारण देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं।'
[उ. ४ ] फिर उनमें से आनन्दरक्षित नामक स्थविर ने इस प्रकार कहा-'आर्यो ! कर्मिता (कर्मों की विद्यमानता या कर्म शेष रहने) के कारण देवता देवलोकों में उत्पन्न होते हैं।'
[उ. ५ ] उनमें से काश्यप नामक स्थविर ने यों कहा-'आर्यो ! संगिता-(रागभाव = आसक्ति) के फ़ कारण देव देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार हे आर्यो ! (वास्तव में) पूर्व (रागभावयुक्त) तप से, पूर्व (सराग) संयम से, कर्मिता (कर्मक्षय न होने से या कर्मों के रहने) से, तथा संगिता (द्रव्यासक्ति) से, देवता, देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। यह बात (अर्थ) सत्य है। इसलिए कही है, हमने अपना आत्मभाव (अपना
अहंभाव या अभिप्राय) बताने की दृष्टि से नहीं कही है।' ___[Ans. 2] (On hearing this question from the shramanopasaks) Sthavir Kalik-putra said to the shramanopasak-"Noble ones ! Gods (Devs) are born in divine realms (Dev-loks) due to past austerities (purva-tap).” ___ [Ans. 3] Sthavir Mehil (Medhil) said—“Noble ones ! Gods (Devs) are .
born in divine realms (Dev-loks) due to past restraints (purva-samyam).” ___ [Ans. 4] Sthavir Anandarakshit said-“Noble ones ! Gods (Devs) are born in divine realms (Dev-loks) due to residual karmas from the past (karmita).”
[Ans. 5] Sthavir Kashyap said—“Noble ones ! Gods (Deus) are born in divine realms (Dev-loks) due to feeling of attachment or craving (sangita). Thus, Noble ones ! (In fact) gods (Devs) are born in divine realms (Dev-loks) due to past (attachment-infested) austerities (purva. tap), past (attachment-infested) restraints (purva-samyam), residual : karmas from the past (karmita) and feeling of attachment or craving
(sangita). We state this because this is the truth and not because this is fi what we want to say (out of ego or personal prejudice).”
१८. तए णं ते समणोवासया थेरेहिं भगवंतेहिं इमाइं एयारूवाइं वागरणाई वागरिया समाणा हट्टतुट्ठा म थेरे भगवंते वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता पसिणाई पुच्छंति, पुच्छित्ता अट्ठाई उवादियंति, उवादिएत्त
उदाए उद्रेति, उद्वित्ता थेरे भगवंते तिक्खत्तो वंदंति णमंसंति. वंदित्ता नमंसित्ता थेराणं भगवंताणं अंतियाओ , । पुप्फवतियाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
१८. तत्पश्चात् वे श्रमणोपासक, स्थविर भगवन्तों द्वारा प्रदत्त उत्तरों को सुनकर हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए और स्थविर भगवन्तों को वन्दना नमस्कार करके अन्य प्रश्न भी पूछने लगे। प्रश्न पूछकर फिर
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| द्वितीय शतक :पंचम उद्देशक
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Second Shatak: Fifth Lesson
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