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[उ. ] स्थविर भगवन्तों ने उन श्रमणोपासकों को इस प्रकार उत्तर दिया- 'हे आर्यो ! संयम का फल 5 अनास्रवता (संवरसम्पन्नता) है। तप का फल व्यवदान (कर्मों को विशेष रूप से काटना आत्मा को शुद्ध करना) है।'
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16. Listening to and understanding the religious discourse given by Sthavir Bhagavants, those shramanopasaks became pleased, contented... 5 and so on up to ... their hearts bloomed with bliss. They went around Sthavir Bhagavants three times clockwise. They performed their 卐 threefold worship and then said
[Q.] Bhante ! What is the outcome of restraint (samyam ) ? Bhante ! 5 What is the outcome of austerities (tap)?
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[Ans.] The Sthavir Bhagavants replied as follows - O noble ones ! The 5 outcome of restraint (samyam) is blockage of inflow of karmas (anashravata). The outcome of austerities (tap) is purification of soul by extensive shedding of karmas (vyavadaan).
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१७. [ प्र. १ ] तए णं ते समणोवासया थेरे भगवंते एवं वयासी - जइ णं भंते ! संजमे 5 अणण्यफले, तवे वोदाणफले किंपत्तियं णं भंते ! देवा देवलोएसु उववज्जंति ?
१७. [प्र. १ ] (उत्तर सुनकर ) श्रमणोपासकों ने स्थविर भगवन्तों से (पुनः) इस प्रकार पूछा'भगवन् ! यदि संयम का फल अनास्रवता है और तप का फल व्यवदान है तो देव देवलोकों में किस कारण से उत्पन्न होते हैं ?'
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17. [Q. 1] (At this) the shramanopasak further asked – “ Bhante ! If 5 The outcome of restraint (samyam) is blockage of inflow of karmas (anashravata) and the outcome of austerities (tap) is purification of soul 5 by extensive shedding of karmas (vyavadaan) then why gods ( Devs) are 5 born in divine realms (Dev-loks) ?
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[ उ. २ ] तत्थ णं कालियपुत्ते नामं थेरे ते समणोवासए एवं वयासी - पुव्वतवेणं अज्जो ! देवा देवलोएसु उववज्जंति।
[ उ. ३ ] तत्थ णं मेहिले नाम थेरे ते समणोवासए एवं वयासी - पुव्यसंजमेणं अज्जो ! देवा देवलोएसु 5 उववज्जति ।
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[ उ. ४ ] तत्थ णं आणंदरक्खिए णामं थेरे ते समणोवासए एवं वयासी- कम्मियाए अज्जो ! देवा फ्र देवलोएसु उववज्जंति ।
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[ उ. ५ ] तत्थ णं कासवे णामं थेरे ते समणोवासए एवं वयासी -संगियाए अज्जो ! देवा देवलोएस 5 उववज्र्ज्जति। पुव्वतवेणं पुव्वसंजमेणं कम्मियाए संगियाए अज्जो ! देवा देवलोएसु उववज्जंति। सच्चे णं एस अट्ठे, नो चेव णं आयभाववत्तव्ययाए ।
भगवतीसूत्र (१)
(298)
Bhagavati Sutra (1)
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