________________
फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ
फफफफफफफफफफ
With a desire to listen to religious sermon they faced Bhagavant, bowed to him and sat down at proper place drawing in and folding their limbs and humbly joining their palms. (2) Vocal worship-When senior ascetics uttered something they responded by saying in compliance-"Bhante! It फ is, indeed, so. Bhagavan ! So is the reality and so is the truth. Bhante ! Your word is what we need and what we accept." (3) Mental worshipFilling their mind with intense and sincere feeling of renouncing the mundane, freeing their mind of any contradictions, antagonism and distraction, they devoted themselves keenly to the pursuance of the path 5 of liberation.]
卐
5 परिकहेंति, जहा केसिसामिस्स जाव समणोवासियत्ताए आणाए आराहगे भवंति जाव धम्मो कहिओ ।
卐
卐
फ
की तरह चातुर्याम-धर्म का उपदेश दिया। यावत् वे श्रमणोपासक अपनी श्रमणोपासकता द्वारा 5 ( उन स्थविर भगवन्तों की) आज्ञा के आराधक हुए। यावत् धर्मकथा पूर्ण हुई ।
卐
卐
5
卐
卐
卐
१५. तए णं ते रा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं तीसे य महतिमहालया परिसाए चाउज्जामं धम्मं
卐
१५. तत्पश्चात् उन स्थविर भगवन्तों ने उन श्रमणोपासकों तथा उस महती परिषद् को केशी श्रमण
5
15. Then those illustrious senior ascetics, as Keshi Shraman had done
in the past, gave their sermon of four dimensional religion (Chaturyam
Dharma) to those shramanopasaks and the large congregation... and so
on up to... those shramanopasaks became followers of the tenets of those senior ascetics through their devotion for the ascetic order... and so on up to... The sermon was concluded.
श्रमणोपासकों के प्रश्न : स्थविरों के उत्तर
QUESTIONS BY SHRAMANOPASAKS: ANSWERS BY STHAVIRS
१६. तए णं ते समणोवासया थेराणं भगवंताणं अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ जाव हयहियया
तिक्खुत्तो आयाहिण - पयाहिणं करेंति, जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति, पज्जुवासित्ता एवं
5 वयासी
[प्र. ] संजमे णं भंते ! किंफले ? तवे णं भंते ! किंफले ?
[ उ. ] तए णं ते थेरा भगवंतो ते समणोवासए एवं वयासी-संजमे णं अज्जो ! अणण्यफले, 5 तवे वोदाणफले ।
१६. तदनन्तर वे श्रमणोपासक स्थविर भगवन्तों से धर्मोपदेश सुनकर एवं हृदयंगम करके बड़े हर्षित और सन्तुष्ट हुए, उनका हृदय खिल उठा और उन्होंने स्थविर भगवन्तों की दाहिनी ओर से तीन बार प्रदक्षिणा की। तीन प्रकार की उपासना द्वारा उनकी पर्युपासना की और फिर इस प्रकार पूछा[प्र. ] भगवन् ! संयम का क्या फल है ? भगवन् ! तप का क्या फल है ?
द्वितीय शतक : पंचम उद्देशक
(297)
Jain Education International
5**தத*******************************
Second Shatak: Fifth Lesson
For Private & Personal Use Only
फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ
卐
5
卐
www.jainelibrary.org