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________________ फ्र 卐 卐 卐 मार्ग मिलते हैं, ऐसे ) रास्तों में (चार मार्ग मिलते हैं, ऐसे चौराहों) में तथा अनेक मार्ग मिलते हैं, ऐसे मार्गों में राजमार्गों में एवं सामान्य मार्गों में सर्वत्र उन स्थविर भगवन्तों के पदार्पण की बात फैल गई। 5 जनता एक ही दिशा में उन्हें वंदन करने के लिए जाने लगी है। 卐 卐 फ्र श्रमणोपासक स्थविरों की सेवा में IN SERVICE OF STHAVIRS १३. तए ण तुंगियाए नगरीए सिंघाडग-तिग- चउक्क - चच्चर - महापहपहेसु जाव एगदिसादभिमुहा णिज्जायंति । १३. तदनन्तर तुंगिका नगरी के शृंगाटक (सिंघाड़े के आकार वाले त्रिकोण) मार्ग में, त्रिक (तीन 13. Then the news of his arrival spread all over in Tungika city including triangular courtyards (shringatak), crossings of three, four and more paths and on highways. People started moving in just one direction in order to pay homage to him. १४. तए णं ते समणोवासया इमीसे कहाए लट्ठा समाणा हट्ठतुट्ठा जाव सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं 5 5 तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं णाम- गोत्तस्स वि सवणयाए किमंग पुण अभिगमण-वंदण-नमंसण फ्र फ्र वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया ! पासावच्चेज्जा थेरा भगवंतो विहरंति । तं महाफलं खलु देवाणुप्पिया ! 卐 पडिपुच्छण - पज्जुवासणयाए जाव गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! थेरे भगवंते वंदामो नमसामो 卐 卐 5 जाव पज्जुवासामो, एयं णं इहभवे वा परभवे वा जाव आणुगामियत्ताए भविस्सति, इति । फ फ्र 5 उवागच्छंति, उवागच्छित्ता व्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय - मंगल - पायच्छित्ता, सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई 卐 कट्टु अन्नमन्नस्स अंतिए एयमटं पडिसुणेंति, पडिसुणित्ता जेणेव सयाई सयाई गिहाई तेणेव 卐 5 पडिनिक्खमित्ता, एगयओ मेलायंति। मेलायित्ता पायविहारचारेणं तुंगियाए नगरीए मज्झं मज्झेणं निग्गच्छंति, फ्र स्थाई पवराई परिहिया, अप्पमहग्घा - भरणालंकियसरीरा सएहिं सएहिं गेहेहिंतो पडिनिक्खमंति, 5 अभिगच्छंति, तं जहा १. सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए, २. अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणताए, निग्गच्छित्ता जेणेव पुष्फवतीए चेतिए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंत पंचविहेणं अभिगमेणं ३. एगसाडिएणं उत्तरासंगकरणेणं, ४. चक्खुप्फासे अंजलिप्पग्गहेणं, ५. मणसो एगत्तीकरणेणं, जेणेव थेरा 5 卐 5 भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण -पयाहिणं करेंति, करित्ता जाव तिविहाए फ पज्जुवासणाए पज्जुवासेंति । तं जहा - काइ० वाइ० माण० । तत्थ काइयाए-संकुचियपाणि - पाए सुस्सूसमाणे समाणे अभिमु विएण पंडलिउडे पजलिउडे पज्जुवासंति । (२) वाइयाए - जं जं भगवं वागरेति 'एवमेयं 5 卐 भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! 5 फ्र 卐 फ इच्छियपडिच्छियमेयं भंते! वायाए अपडिकूलेमाणा विणएणं पज्जुवासंति । (३) माणसियाए - संवेगं जणयंता तिब्बधम्मापुरागरत्ता विगह - विसोत्तियपरिवज्जियमई अन्नत्थ कत्थइ मणं अकुव्यमाणा विणएणं पज्जुवासंति।' 5 १४. जब यह बात तुंगिका नगरी के श्रमणोपासकों को ज्ञात हुई तो वे अत्यन्त हर्षित और सन्तुष्ट फ्र फ्र हुए, परस्पर एक-दूसरे को बुलाकर इस प्रकार कहने लगे - हे देवानुप्रियो ! ( सुना है कि ) भगवान भगवतीसूत्र (१) (294) Jain Education International குததததக*************************தி**ழி Bhagavati Sutra (1) For Private & Personal Use Only 2 95 95 95 95 95 96 97 95 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 55 55 5552 फ्र फ्र 卐 卐 फ्र www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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