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द्वितीय शतक :
चतुर्थ उद्देशक
SECOND SHATAK (Chapter Two): FOURTH LESSON
इन्द्रियों के संस्थानादि का वर्णन DESCRIPTION OF INDRIYAS
१. [ प्र. ] कइ णं भंते! इंदिया पण्णत्ता ?
[उ.] गोयमा ! पंच इंदिया पण्णत्ता, तं जहा- पढमिल्लो इंदियउद्देसओ नेयव्वो, संटाणं बाहल्लं
पोहत्तं जाव अलोगो | इंदिय उद्देसो ।
इन्द्रिय INDRIYA (SENSE ORGANS)
१. [ प्र. ] भगवन् ! इन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[उ. ] गौतम ! पाँच इन्द्रियाँ हैं । जैसे- श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय। यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के पन्द्रहवें, इन्द्रियपद का प्रथम उद्देशक कहना चाहिए। उसमें कथित इन्द्रियों का संस्थान, बाहल्य (मोटाई), चौड़ाई, यावत् अलोक (द्वार) तक के विवेचन - पर्यन्त समग्र इन्द्रिय- उद्देशक कहना चाहिए।
1. [Q.] Bhante ! How many Indriyas (sense organs) are there?
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[Ans.] Gautam ! There are five sense organs — Shrotrendriya (sense 5 organ of hearing, ears), Chakshurindriya (sense organ of seeing; eyes), 5 Ghranendriya (sense organ of smell; nose), Rasanendriya (sense organ of 5 tasting; tongue) and Sparshendriya (sense organ of touch ; skin). Here the first lesson of the fifteenth chapter, Indriyapad, of Prajanapana Sutra should be repeated. All the information about structure, thickness and width of sense organs up to Alok mentioned there should be included. The whole chapter on sense organs should be stated.
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॥ बित्तीय सए : चउत्थो उद्देसो समत्तो ॥
विवेचन : इन्द्रिय-सम्बन्धी द्वारगाथा - प्रज्ञापनासूत्र के पन्द्रहवें इन्द्रियपद के प्रथम उद्देशक में वर्णित इन्द्रिय-सम्बन्धित द्वारों की गाथा इस प्रकार है
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द्वितीय शतक : चतुर्थ उद्देशक
'संठाणं बाहल्लं पोहत्तं कइ - पएस ओगाढे।
अप्पाबहु पुट्ट - पवि - विसय- अणगार - आहासरे ' ॥ २०२ ॥
अद्दाय असी य मणी उडुपाणे तेल्ल फाणिय वसाय।
कंबल थूणा थिग्गल दीवोदहि लोगऽलोगे ॥ २०३ ॥
अर्थात् - ( १ ) संस्थान (आकारविशेष ) - श्रोत्रेन्द्रिय का संस्थान कदम्बपुष्प के आकार का है, चक्षुरिन्द्रिय का
मसूर की दाल या चन्द्रमा के आकार का, घ्राणेन्द्रिय का अतिमुक्तक पुष्पवत् है; रसनेन्द्रिय का क्षुरप्र (उस्तरे ) के फ
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Second Shatak: Fourth Lesson
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