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चित्र परिचय-६
Illustration No. 6 सात प्रथ्वियाँ : नरकावास (अ) गणधर गौतम द्वारा सात नरक पृथ्वियों के विषय में पूछने पर भगवान बताते हैं-मेरु पर्वत के ऊ 5 समभूतला से १ हजार योजन नीचे जाने पर रत्नप्रभा नामक प्रथम पृथ्वी की सीमा प्रारम्भ होती है। इसकी म मोटाई (ऊँचाई) एक लाख अस्सी हजार योजन की है। १ हजार योजन ऊपर एक हजार योजन नीचे छोड़कर
१.७८ हजार योजन में स्थित १३ पाथड़ों में तीस लाख नारकावास हैं। इसके नीचे शर्करा प्रभा, बालुका प्रभा
आदि सात पृथ्वियाँ (नरक भूमियाँ) स्थित हैं। इनके सभी पाथड़ों (प्रस्तर) की मोटाई तीन हजार योजन की है। ऊ जिनमें नीचे का १ हजार योजन निबिड अंधकारमय, बीच का १ हजार योजन पोला (खाली) तथा ऊपर काम
१ हजार योजन संकुचित आकार का है। प्रथम नरक के १३ प्रतरों में ४४३३ आवलिका प्रविष्ट, बाकी २९,९५,५६७ प्रकीर्णक है। सातों नरकों में कुल ८४ लाख नारकावास हैं।
(ब) नरकों का संस्थान-चारों दिशाओं में पंक्ति रूप में अवस्थित-आवलिका प्रविष्ट है। वे गोल. त्रिकोण तथा चतुष्कोण है। तथा शेष प्रकीर्णक (बिखरे हुए) विविध आकार के हैं।
इनमें सबसे बीच में स्थित सीमन्तक नामक नरकेन्द्रक है। यह सबसे बड़ा है। बाकी चारों दिशाओं व विदिशाओं में भिन्न-भिन्न प्रमाण में नारकावास हैं। की नरकों का वर्ण अत्यन्त कृष्ण, रोमहर्षक, दुर्गन्ध युक्त, बिच्छू के डंक की तरह तीक्ष्ण स्पर्श वाला, धधकती अंगार ज्वाला के समान कष्टदायक है।
-शतक २, उ. ३, सूत्र १ (विशेष संदर्भ : जीवाभिगम तृतीय प्रतिपत्ति)
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SEVEN PRITHVIS (HELLS) (A) On being asked by Gautam Ganadhar about seven hells Bhagavan 51 explains--Going 1000 Yojans below the flat land at the base of Meru mountain starts boundary of the first hell called Ratnaprabha Prithvi. The depth of Ratnaprabha prithvi is one hundred eighty thousand Yojans. Leaving one thousand Yojans from top as well as bottom there are three million infernal abodes in the 13 sections of the remaining 1,78,000 Yojans. Below this are seven hells including Sharkaraprabha and Balukaprabha. The depth of each of these including all sections is three thousand Yojans. Of these the lowest section of one thousand Yojans is pitch dark, the middle section of the same depth is hollow and the upper one is tapered. In the 13 sections there are 4433 abodes in rows and remaining 29,95,567 are scattered at random. The total number of abodes in the seven hells is 8.4 million.
(B) Structure-Some of the abodes in hells are in rows in all the four directions. They are round, triangular and quadrangular in shape. The remaining are scattered at random.
In the middle is the central abode called Simantak. It is the largest: Other abodes scattered all around this are of different dimensions.
The colour of the hells is fearfully black and extremely terrifying. The odour 451 very repulsive. The touch is more painful than a flame or sting of a scorpion.
-Shatak 2, lesson 3, Sutra 1 (more details : Jivabhigam, third Pratipatti) 4
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