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के आकार का है और स्पर्शेन्द्रिय का संस्थान नाना प्रकार का है। (२) बाहल्य (मोटाई)-पाँचों इन्द्रियों की मोटाई के
अंगुल के असंख्यातवें भाग है। (३) विस्तार-लम्बाई आदि की-तीन इन्द्रियों की लम्बाई अंगुल के असंख्यातवें
भाग है। रसनेन्द्रिय की दो से नौ अंगुल तक तथा स्पर्शेन्द्रिय की लम्बाई अपने-अपने शरीर प्रमाण है। ऊ (४) कतिप्रदेश-प्रत्येक इन्द्रिय अनन्त प्रदेशी है। (५) अवगाढ़-प्रत्येक इन्द्रिय असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ है।'
(६) अल्पबहुत्व-सबसे कम अवगाहना चक्षुरिन्द्रिय की, उससे संख्यातगुणी अवगाहना क्रमशः श्रोत्रेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय की और उससे असंख्यातगुणी अवगाहना रसनेन्द्रिय की और उससे भी संख्यातगुणी स्पर्शेन्द्रिय की है।
इसी प्रकार का अल्पबहुत्व प्रदेशों के विषय में समझना चाहिए। (७-८) स्पृष्ट और प्रविष्ट-चक्षुरिन्द्रिय को 5 छोड़कर शेष चार इन्द्रियाँ प्राप्यकारी हैं। (९) विषय-श्रोत्रेन्द्रिय के ५, चक्षुरिन्द्रिय के ५, घ्राणेन्द्रिय के २, 5
रसनेन्द्रिय के ५ और स्पर्शेन्द्रिय के ८ विषय हैं। पाँचों इन्द्रियों का विषय (ग्रहण-क्षमता) जघन्य अंगुल का ऊ असंख्यातवाँ भाग है, उत्कृष्ट श्रोत्रेन्द्रिय का १२ योजन, चक्षुरिन्द्रिय का साधिक १ लाख योजन, घ्राणेन्द्रिय,
रसनेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय का ९-९ योजन है। इतनी दूरी से ये स्वविषय को ग्रहण कर लेती हैं। इसके पश्चात्-(१०) अनगारद्वार, (११) आहारद्वार, (१२) आदर्शद्वार, (१३) असिद्वार, (१४) मणिद्वार, (१५) उदपान (दुग्धपान) द्वार, (१६) तैलद्वार, (१७) फाणितद्वार, (१८) वसाद्वार, (१९) कम्बलद्वार (२०) स्थूणाद्वार, (२१) थिग्गलद्वार, (२२) द्वीपोदधिद्वार, (२३) लोकद्वार, और (२४) अलोकद्वार। यों अलोकद्वार पर्यन्त चौबीस द्वारों के माध्यम से इन्द्रिय-सम्बन्धी प्ररूपणा की गई है। इस सम्बन्ध में विशेष फ़ विवेचन प्रज्ञापनासूत्र के पन्द्रहवें इन्द्रियपद के प्रथम-उद्देशक से जान लेना चाहिए। (प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २९५-३०८)
॥ द्वितीय शतक : चतुर्थ उद्देशक समाप्त॥ Elaboration-The attributes (dvar) of the sense organs (indriyas) according to the collative verse in the first lesson of the fifteenth chapter Indriyapad, of Prajnapana Sutra are as follows
(1) Samsthan (structure or shape)-The shape of Shrotrendriya 41 (sense organ of hearing; ears) is like Kadamba (Nauclea cadamba)
flower; that of Chakshurindriya (sense organ of seeing; eyes) is like Masur (Lens esculenta; a small grained pulse) or the moon; that of Ghranendriya (sense organ of smell; nose) is like Atimuktak (Madhavi creeper or Gaertnera racemosa) flower, that of Rasanendriya (sense
organ of tasting; tongue) is like a razor (kshurapra), and Sparshendriya 卐 (sense organ of touch; skin) has a variety of shapes. (2) Bahotya
(thickness)-The thickness of each of the five sense organs is innumerable fraction of an Angul (a linear measure equivalent to the thickness of a finger). (3) Vistar (length)-The length of each of the first
three sense organs is innumerable fraction of an Angul, that of 4 Rasanendriya is two to nine Anguls and that of Sparshendriya is equal
to the dimension of the body of the individual. (4) Katipradesh (composition)-Each sense organ has infinite space-points or fractions.
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भगवतीसूत्र (१)
(280)
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