________________
)
)
)
)
))
)
)
)
8555555555 5 5 5 45 5 45 55555555555555555555555555558 卐 Achyut Kalp (adivine dimension). There some of the gods have a life-span
of twenty two Sagaropam (a metaphoric unit of time). Skandak Dev too # has the life-span of twenty two Sagaropam (a metaphoric unit of time). म ५४. [प्र. ] से णं भंते ! खंदए देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइखएणं अणंतरं
चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववजिहिति ? + [उ. ] गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति बुझिहिति मुच्चिहिति परिनिव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति। खंदओ सम्मत्तो।
॥बितीय सए : पढमो उद्देसो समत्तो॥ म ५४. [प्र. ] तत्पश्चात् गौतम स्वामी ने पूछा-'भगवन् ! स्कन्दक देव वहाँ की आयु का क्षय, भव
का और स्थिति का क्षय करके उस देवलोक से कहाँ जाएँगे और कहाँ उत्पन्न होंगे?' ॐ [उ. ] गौतम ! स्कन्दक देव वहाँ की आयु, भव और स्थिति का क्षय होने पर महाविदेह-वर्ष + (क्षेत्र) में जन्म लेकर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त करेंगे और सभी दुःखों का अन्त करेंगे। श्री स्कन्दक का जीवन-वृत्त पूर्ण हुआ।
54. (Q.) Gautam Swami again asked, “Bhagavan ! After completing the age, state and life there, where will Skandak Dev go from that divine realm and where will he be born ?"
(Ans.] "Gautam ! After concluding the age, state and life there, Skandak Dev will be born as a human being in the Mahavideh area and achieving purity, enlightenment, and freedom he will attain Nirvana and terminate all his miseries." This concludes the story of life of Shri Skandak.
विशेष शब्दार्थ-आउखएणं = आयुष्यकर्म के दलिकों की निर्जरा होने से, भवक्खएणं = देवभव के कारणभूत गत्यादि (नाम) कर्मों की निर्जरा होने से, ठिइक्खएणं = आयुष्यकर्म भोग लेने से स्थिति का क्षय होने के कारण।
॥ द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त॥
)
听听听听听听听听听听听听听听听$ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$
))
)
)
)
)
)
))
TECHNICAL TERMS
Aaukkhayenam-on shedding of the particles of ayushya karma (lifespan determining karmas); concluding the age. Bhavakkhayenam-on i shedding of the particles of naam-karma responsible for the divine state;
concluding the state. Thi-ikkhayenam-end of life due to conclusion of life-span determining karmas; concluding the life.
• END OF THE FIRST LESSON OF THE SECOND SHATAK •
卐5555555555)
भगवतीसूत्र (१)
(274)
Bhagavati Sutra (1)
5555555555555555555555555555558
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org