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) mountain. Then they came where Shraman Bhagavan Mahavir was seated. After paying homage, those senior ascetics submitted—“Bhante ! Your disciple ascetic Skandak was by nature noble, humble and serene; had only traces of anger, conceit, deceit and greed; was soft and polite; had subdued his sense organs and was gentle and modest. Getting your permission, taking five great vows on his own, and seeking forgiveness from all the ascetics he had gone to the Vipul mountain with us... and so on up to... Following the prescribed procedure he took the ultimate vow and consequently met his end. These are his ascetic-equipment." स्कन्दक की गति विषय में कथन ABOUT REBIRTH OF SKANDAK
५३. [प्र. ] 'भंते !' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नामं अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए, कहिं उववण्णे ? _ [उ. ] ‘गोयमा !' इ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी-एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी खंदए नामं अणगारे पगतिभद्दए जाव से णं मए अब्भणुण्णाए समाणे सयमेव पंच महब्बयाई आरोवित्ता तं चेव सव्वं अविसेसियं नेयव् जाव (सु. ५०-५१) आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णे। तत्थ णं एगइयाणं देवाणं बावीसं सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। तत्थ णं खंदयस्स वि देवस्स बावीसं सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता।
५३. [प्र. ] तत्पश्चात् भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दनानमस्कार करके पूछा-'भगवन् ! आपके शिष्य स्कन्दक अनगार कालधर्म को प्राप्त करके कहाँ गए और कहाँ उत्पन्न हुए?' _ [उ. ] श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने फरमाया-'हे गौतम ! मेरा शिष्य स्कन्दक अनगार, प्रकृतिभद्र यावत् विनीत मेरी आज्ञा प्राप्त करके, स्वयमेव पंचमहाव्रतों का आरोपण करके, यावत् संल्लेखना-संथारा करके समाधि को प्राप्त होकर काल करके अच्युतकल्प (देवलोक) में देवरूप में उत्पन्न हुआ है। वहाँ कतिपय देवों की स्थिति बाईस सागरोपम की है। तदनुसार स्कन्दक देव की स्थिति भी बाईस सागरोपम की है।'
53. [Q.] Gautam Swami asked Shraman Bhagavan Mahavir after offering due homage and obeisance-"Bhante ! After his death where has your disciple ascetic Skandak has gone and where has he taken birth ?"
[Ans.] Shraman Bhagavan Mahavir replied, “Gautam ! My disciple ascetic Skandak was by nature noble... and so on up to... modest. Getting my permission, taking five great vows on his own... and so on up to... took the ultimate vow, met his end and has reincarnated as a divine being in
द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक
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Second Shatak: First Lesson
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