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குதமிழமிழதமிழதழதழதமி*பூமிமிததமிதமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமி
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मासियाए संलेहणाएं अत्ताणं झूसित्ता सट्टि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते
आणुपुवी कालगए।
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फ्र
५१. इसके पश्चात् स्कन्दक अनगार, श्रमण भगवान महावीर स्वामी के तथारूप स्थविरों के पास
ग्यारह अंगों का अध्ययन, पूरे बारह वर्ष तक श्रमण-पर्याय का पालन करके, एक मास की संलेखना से अपनी आत्मा को संलिखित (सेवित युक्त) करके साठ भक्त का त्यागरूप अनशन करके, आलोचना और प्रतिक्रमण करके समाधि प्राप्त करके क्रमशः कालधर्म को प्राप्त हुए।
51. After that, having concluded his study of eleven Angas under
senior ascetic disciples (sthavirs) of Shraman Bhagavan Mahavir, having completed twelve year span of ascetic life, having enriched his soul with month long final fasting (samlekhana), having performed fast by missing
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sixty meals and doing self-appraisal (pratikraman) and critical review
5 (alochana), ascetic Skandak attained the transcendental state (samadhi)
and passed away. ५२. तए णं ते
रा भगवंतो खंदयं अणगारं कालगयं जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेंति,
करिता, पत्त - चीवराणि गिण्हंति, गिण्डित्ता विपुलाओ पव्ययाओ सणियं २ पच्चीसक्कंति, पच्चोसक्कित्ता
जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नामं अणगारे पगइभद्दए पगतिविणीए पगतिउवसंते पगति - पयणुकोह - माण - माया - लोभे मिउ-मद्दवसंपन्ने अल्लीणे भद्दए विणीए । से णं देवानुप्पिएहिं अब्भगुण्णाए समाणे सयमेव पंच महव्वयाणि आरोवित्ता समणे य समणीओ य खामेत्ता, अम्हेहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं तं चैव निरवसेसं जाव (सु. ५०) अहाणुपुव्वी कालगए। इमे य से आयारभंडए ।
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५२. तत्पश्चात् उन स्थविर भगवन्तों ने स्कन्दक अनगार को कालधर्म प्राप्त हुआ जानकर उनके परिनिर्वाण (समाधिमरण) सम्बन्धी कायोत्सर्ग किया। फिर उनके पात्र, वस्त्र आदि उपकरणों को लेकर वे विपुलगिरि से शनैः-शनैः नीचे उतरे। उतरकर जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी विराजमान थे, फ्र वहाँ आए। भगवान को वन्दना - नमस्कार कर उन स्थविर मुनियों ने इस प्रकार कहा- हे भगवन् ! आप देवानुप्रिय के शिष्य स्कन्दक अनगार, जोकि प्रकृति से भद्र, प्रकृति के विनीत, स्वभाव से उपशान्त, 5 अल्पक्रोध - मान-माया - लोभ वाले, कोमलता और नम्रता से युक्त, इन्द्रियों को वश में करने वाले, भद्र और विनीत थे, वे आपकी आज्ञा लेकर स्वयमेव पंचमहाव्रतों का आरोपण करके, साधु-साध्वियों से
क्षमापना
करके, हमारे साथ विपुलगिरि पर गये थे, यावत् वे पादपोपगमन संथारा करके कालधर्म को प्राप्त हो गए हैं। ये उनके धर्मोपकरण हैं।
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52. When the senior ascetics accompanying ascetic Skandak realized
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that he was dead, they performed the ritual meditation prescribed to be
done
on meditational death (parinirvana). They picked up his equipment
(the things like broom, wooden pots etc.) and slowly came down from the 5
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भगवतीसूत्र ( १ )
Bhagavati Sutra (1)
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(272)
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