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________________ F फफफफफफफफफफफफफफफफफ facing the sun enduring heat during the day and sitting in Virasan posture enduring cold during the night. F F ४५. तए णं से खंदए अणगारे गुणरयणसंवच्छरं तवोकम्मं अहासुत्तं अहाकप्पं जाव आहेत्ता 5 जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता बहूहिं चउत्थ - छट्ठट्ठम - दसम - दुवालसेहिं मासऽद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं 5 भावेमाणे विहरति । F F F 45. After successfully performing (aradhit), as per the sanction, the Gunaratna-samvatsar penance ascetic Skandak approached Shraman Bhagavan Mahavir and paid homage and obeisance. He then resumed his activities enkindling (bhaavit) his soul with a variety of austerities including fasting for one, two, three, four and five days, one month and f one fortnight. F F Б ४५. तदनन्तर स्कन्दक अनगार ने गुणरत्नसंवत्सर नामक तपश्चरण की सूत्रानुसार, कल्पानुसार 5 विधिपूर्वक आराधना की । इसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर के पास आये। उन्हें वन्दना - नमस्कार किया। इसके पश्चात् अनेक उपवास, बेला, तेला, चौला, पचौला, मासखमण (मासिक उपवास), 5 अर्द्धमासखमण इत्यादि विविध प्रकार के तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे । Б 5 5 ४६. इसके पश्चात् वे स्कन्दक अनगार पूर्वोक्त प्रकार के उदार ( फलाशरहित), विपुल ( दीर्घकालीन ), प्रदत्त ( गुरु द्वारा अनुज्ञात), प्रगृहीत ( बहुमानपूर्वक आचरित), कल्याणरूप, शिवरूप 5 ( उपद्रवरहित ), धन्यरूप, मंगलरूप ( अनिष्ट का उपशमन करने वाला), श्रीयुक्त (शोभास्पद ), उत्तम, Б Н ४६. तए णं से खंदए अणगारे तेणं ओरालेणं, विपुलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धण्णेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उदारेणं महाणुभागेणं तवोक्कम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अचम्माण किडकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए यावि होत्था, जीवंजीवेण गच्छइ, जीवंजीवेणं ! चिट्ठइ, भासं भासित्ता वि गिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामीति गिलाइ; से जहा नामए कट्ठसगडिया इ वा पत्तसगडिया इ वा पत्त - तिलभंडगसगडिया इ वा एरंडकट्टसगडिया इ वा इंगालसगडिया ! इवा उन्हे दिण्णा सुक्का समाणी ससद्दं गच्छइ, ससद्दं चिट्ठइ, एवामेव खंदए वि अणगारे ससद्दं गच्छ 5 ससद्दं चिट्ठइ, उबचिए तवेणं, अवचिए मंस - सोणिएणं, हुयासणे विव भासरासिपडिच्छन्ने, तदेणं तेएणं ! तवतेयसिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणे चिट्ठइ । Б F 4 Б Y F Б द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक फ्र 4 उदग्र (उत्तरोत्तर वृद्धियुक्त), उदात्त (उत्तम भावयुक्त), सुन्दर, उदार और महाप्रभावशाली तप से शुष्क हो गए, रूक्ष हो गए, माँसरहित हो गए, उनका शरीर केवल हड्डी और चमड़ी से ढका हुआ रह गया । ५ 5 चलते समय हड्डियाँ खड़-खड़ करने लगीं, वे कृश - दुर्बल हो गए, उनकी नाड़ियाँ सामने दिखाई देने ५ लगीं, अब वे केवल अपने आत्म-बल से चलते थे, खड़े रहते थे, तथा वे इतने दुर्बल हो गए थे कि भाषा बोलने के बाद, भाषा बोलते-बोलते भी और भाषा बोलूँगा, इस विचार से भी ग्लानि ( थकावट ) ५ Jain Education International H (265) 4 y For Private & Personal Use Only Second Shatak: First Lesson 4 Y www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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