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called anirharim. The prescribed code for both these Padopagaman deaths essentially restrains any movement or care of the body thus it is apratikarma. Bhakt-pratyakhyan maran-to die after abandoning intake of food till death. This also is of two kinds -- (1) Nirharim, and (2) Anirharim. This is sapratikarma (allows movement or care of the body).
स्कन्दक द्वारा निर्ग्रन्थ प्रव्रज्या SKANDAK'S INITIATION
३२. [ १ ] एत्थ णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते ! तुब्भं अंतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं निसामेत्तए ।
[ २ ] अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह ।
३३. तए णं समणे भगवं महावीरे खंदयस्स कच्चायणसगोत्तस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्मं परिकहेइ । धम्मका भाणियव्वा ।
३२. [ १ ] (भगवान महावीर के उक्त वचनों से समाधान पाकर ) स्कन्दक परिव्राजक को सम्बोध प्राप्त हुआ। उसने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना - नमस्कार करके यों कहा- 'भगवन् ! मैं आपके पास केवलिप्ररूपित धर्म सुनना चाहता हूँ।'
[ २ ] देवानुप्रिय ! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो; शुभ कार्य में विलम्ब मत करो ।
३३. इसके पश्चात् श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने स्कन्दक परिव्राजक को और उस बहुत बड़ी परिषद् को धर्मकथा कही । धर्मकथा का वर्णन औपपातिकसूत्र के अनुसार करना चाहिए।
32. [1] (After getting answers to his questions from Bhagavan Mahavir) Skandak Parivrajak was contented. He paid homage and obeisance to Bhagavan Mahavir and said "Bhante! I am keen to hear the tenets of the religion propounded by Kevalis (omniscients).
[2] "Beloved of gods! Do as you please and avoid languor in a good auspicious deed.”
33. After that Shraman Bhagavan Mahavir gave his sermon to Skandak Parivrajak and the large congregation. Description of discourse should be read (from Aupapatik Sutra ).
३४. तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म तुट्ठे जाव हियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करिता एवं वयासी - सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अब्भुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते! असंद्धिमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं
द्वितीय शतक: प्रथम उद्देशक
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Second Shatak: First Lesson
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