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wilderness of cycles of rebirth. In other words these two kinds of noble
deaths cause a Jiva to reduce his cycles of rebirth (samsar). This is Pundit-maran.
31. O Skandak ! Due to these two kinds of death a Jiva expands and
5 reduces his cycles of rebirth (samsar) respectively.
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३०. इच्चेतेणं खंदया ! दुविहेणं पंडियमरणेणं मरमाणे जीवे अणंतेहिं नेरइयभवग्गहणेहिं अप्पाणं 5
विसंजोएइ जाव वीईवयति । से त्तं मरमाणे हायइ । से त्तं पंडियमरणे ।
३१. इच्चेएणं खंदया ! दुविहेणं मरणेणं मरमाणे जीवो वड्ढइ वा हायति वा ।
३०. हे स्कन्दक ! इन दोनों प्रकार के पण्डितमरणों से मरता हुआ जीव नारकादि अनन्त भवों को
प्राप्त नहीं करता; यावत् संसाररूपी अटवी का उल्लंघन (पार) कर जाता है। इस प्रकार इन दोनों
विवेचन : पण्डितमरण के दो भेद हैं- ( १ ) पादपोपगमन मरण, और (२) भक्तप्रत्याख्यान मरण ।
(१) पादपोपगमन मरण - संथारा करके वृक्ष के समान जिस स्थान पर जिस रूप में एक बार लेट जाये, फिर उसी
जगह उसी रूप में लेटे रहना और इस प्रकार मृत्यु को प्राप्त होना 'पादपोपगमन मरण' है। इसके दो भेद हैं- 55 निर्धारिम और अनिर्धारिम । (१) जो संथारा ग्राम, नगर आदि बस्ती में किया जाये, जिससे मृत शरीर को 5 ग्रामादि से बाहर ले जाकर अग्निदाहादि संस्कार करना पड़े उसे, 'निर्धारिम' कहते हैं । (२) जो संथारा ग्राम,
5 नगर आदि बस्ती से बाहर जंगल आदि एकान्त स्थान में किया जाय, जिससे मृत शरीर को वहाँ से ले जाने की आवश्यकता न रहे, उसे 'अनिर्हारिम' कहते हैं। यह दोनों प्रकार का पादपोपगमन मरण नियमा (नियमपूर्वक ) अप्रतिकर्म (शरीर की सेवा-शुश्रूषा और हलन चलन से रहित) होता है। (२) भक्तप्रत्याख्यान मरण - यावज्जीवन
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तीन या चारों आहारों का त्याग करके मृत्यु का वरण करना। उसके भी निर्धारिम और अनिर्हारिम ये दो भेद हैं। यह मरण सप्रतिकर्म है।
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प्रकार के पण्डितमरणों से मरते हुए जीव का संसार घटता है । यह पण्डितमरण का स्वरूप है।
३ १ . हे स्कन्दक ! इन दो प्रकार के मरणों से मरते हुए जीव का संसार क्रमशः बढ़ता और घटता है। 30. O Skandak ! Meritorious due to these two reasons does not lead a
Jiva (soul) to infinite rebirths in hell... and so on up to... he crosses the फ्र
Elaboration — Pundit-maran (Meritorious death) is of two kindsफ (1) Padapopagaman maran, and (2) Bhakt-pratyakhyan maran. (1) Padapopagaman maran-The aspirant should take the ultimate vow (santhara) and recline at a place. When he dies without changing the spot or shifting the posture it is called Padapopagaman maran (to die lying still like a severed branch of tree). This in turn is of two kinds (1) Nirharim, and (2) Anirharim. (1) Nirharim-the ultimate vow taken at some inhabited place like a village or a town requiring the dead body to be taken out of the town for cremation is called nirharim. 5 (2) Anirharim — the ultimate vow taken at some uninhabited place like a फ्र jungle or other forlorn place not requiring the dead body to be shifted is
Bhagavati Sutra (1)
भगवतीसूत्र (१)
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