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२७. [प्र. ] पण्डितमरण क्या है ? ॐ [उ. ] पण्डितमरण दो प्रकार का है। वह इस प्रकार है-(१) पादपोपगमन (वृक्ष की कटी हुई शाखा 5 की तरह स्थिर निश्चल होकर मरना), और (२) भक्त-प्रत्याख्यान (यावज्जीवन तीनों या चारों आहारों । E का त्याग करने के बाद शरीर की सार सँभाल करते हुए जो मृत्यु होती है।)
27.[Q.] What is that Pundit-maran (noble death)?
[Ans.] Pundit-maran (noble death) is of two kinds(1) Padapopagaman (to die lying still like a severed branch of tree), and (2) Bhakt-pratyakhyan (to die after abandoning intake of food till death and taking proper care of the body).
२८. [प्र. ] से किं तं पाओवगमणे ?
[उ. ] पाओवगमणे दुविहे प., तं जहा-नीहारिमे य अनीहारिमे य, नियमा अप्पडिकम्मे। से तं । पाओवगमणे।
२८. पादपोपगमन (मरण) क्या है ?
[उ.] पादपोपगमन दो प्रकार का है-(१) निर्हारिम, और (२) अनिर्हारिम। यह दोनों प्रकार का फ़ पादपोपगमन मरण नियम से अप्रतिकर्म होता है। यह पादपोपगमन का स्वरूप है। ____28. [Q.] What is this Padapopagaman (death) ?
[Ans.] Padapopagaman (death) is of two kinds-(1) Nirharim (in inhabited surroundings), and (2) Anirharim (in uninhabited surroundings). These both kinds of Padapopagaman (death) entail, as a rule, total restraint of movement and care (apratikarma). This is Padapopagaman.
२९. [प्र. ] से किं तं भत्तपच्चक्खाणे ?
[उ. ] भत्तपच्चक्खाणे दुविहे प., तं जहा-नीहारिमे य अनीहारिमे य, नियमा सपडिकम्मे। से तं भत्तपच्चक्खाणे।
२९. [प्र. ] भक्तप्रत्याख्यान (मरण) क्या है?
[उ. ] भक्तप्रत्याख्यान मरण दो प्रकार है। वह इस प्रकार है-(१) निर्हारिम, और (२) अनि रिम। यह दोनों प्रकार का भक्तप्रत्याख्यान मरण नियम से सप्रतिकर्म होता है। यह-भक्तप्रत्याख्यान का स्वरूप है।
29. (Q.) What is this Bhakt-pratyakhyan (death)?
[Ans.] Bhakt-pratyakhyan (death) is of two kinds-(1) Nirharim (in inhabited surroundings), and (2) Anirharim (in uninhabited surroundings). These both kinds of Bhakt-pratyakhyan (death), as a rule, allow movement and care (apratikarma). This is Bhakt-pratyakhyan.
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द्वितीय शतक :प्रथम उद्देशक
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Second Shatak: First Lesson
955)
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