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21. During that period Shraman Bhagavan Mahavir was eating food everyday (vyavrittabhoji). As such, the body of Vyavrittabhoji Shraman Bhagavan Mahavir was noble (udaar), appealing and th extremely graceful ( shringar), beatific (kalyan), blissful (dhanya),
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[4] After this Bhagavan Gautam Swami resolved to go with Skandak Parivrajak where Bhagavan Mahavir was seated.
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भगवान द्वारा स्कन्दक का समाधान EXPLANATION BY BHAGAVAN
२१. तेणं कालेणं तेणं समए णं समणे भगवं महावीरे वियडभोई याऽवि होत्था । तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स वियडभोइस्स सरीरयं ओरालं सिंगारं कल्लाणं सिवं धण्णं मंगल्लं सस्सिरीयं अणलंकियविभूसियं लक्खण- वंजणगुणोववेयं सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणं चिट्ठ |
२१. उस समय में श्रमण भगवान महावीर व्यावृत्तभोजी (प्रतिदिन आहार करने वाले ) थे। इसलिए व्यावृत्तभोजी श्रमण भगवान महावीर स्वामी का शरीर उदार (प्रधान), शृंगाररूप, अतिशय शोभासम्पन्न, कल्याणरूप, धन्यरूप, मंगलरूप, बिना अलंकार के ही सुशोभित (दीप्तियुक्त), उत्तम लक्षणों ( शुभ चिन्हों), व्यंजनों (तिल आदि) और गुणों से युक्त तथा शारीरिक शोभा से अत्यन्त शोभित हो
रहा था।
auspicious (mangal), radiant without embellishments, endowed with noble signs (lakshan), marks (vyanjan) and attributes and it appeared exquisite with physical beauty.
महावीरं तिक्खुत्तो याहिण -पयाहिणं करेइ जाव पज्जुवासइ ।
२२. तब व्यावृत्तभोजी श्रमण भगवान महावीर के उदार यावत् अतीव शोभायमान शरीर को
देखकर स्कन्दक परिव्राजक को अत्यन्त हर्ष हुआ, सन्तोष हुआ एवं उसका चित्त आनन्दित हुआ। वह
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5 आनन्दित, मन में प्रीतियुक्त परम सौमनस्य प्राप्त तथा हर्ष से प्रफुल्ल हृदय होता हुआ जहाँ श्रमण
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भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके निकट आया । निकट आकर श्रमण भगवान महावीर की
दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की, यावत् पर्युपासना करने लगा। (सन्मुख बैठ गया)
२२. तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स वियडभोइस्स सरीरयं ओरालं
जाव अतीव - अतीव उवसोभेमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए
हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं
22. Seeing the noble... and so on up to... exquisite body of
Vyavrittabhoji Shraman Bhagavan Mahavir Skandak Parivrajak was
extremely pleased, contented and happy. Overwhelmed with joy, intensely thrilled and exhilarated with bliss he came near the place where Shraman Bhagavan Mahavir was seated. Coming there, he went
around Shraman Bhagavan Mahavir clockwise three times... and so on
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up to... worshipped. (took his seat facing Bhagavan)
5 भगवतीसूत्र (१)
(246)
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Bhagavati Sutra (1)
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