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卐 scholar of Ganit Shastra (mathematics), Shiksha Shastra (education),
Kalp (rituals), Vyakaran Shastra (grammar), Chhanda Shastra (poetics or prosody), Nirukta Shastra (etymology) and Jyotish Shastra (astrolgoy) besides many other ethical and philosophical works related to Brahmins and Pariurajaks.
१३. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पिंगलए नामं नियंठे वेसालियसावए परिवसइ। तए णं से पिंगलए ॐ णामं णियंठे वेसालियसावए अण्णदा कयाइं जेणेव खंदए कच्चायणसगोत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता - खंदग कच्चायणसगोत्तं इणमक्खेवं पुच्छे-मागहा ! किं सअंते लोए, अणंते लोए १, सअंते जीवे अणते है
जीवे २, सअंता सिद्धी अणंता सिद्धी ३, सअंते सिद्धे अणंते सिद्धे ४, केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे वहति वा हायति वा ५ ? एतावं ताव आयक्खाहि। वुच्चमाणे एवं।
१३. उसी श्रावस्ती नगरी में वैशालिक श्रावक-(भगवान महावीर के वचनों को सुनने वाला) पिंगल नामक निर्ग्रन्थ था। एकदा वह वैशालिक श्रावक पिंगल नामक निर्ग्रन्थ किसी दिन जहाँ कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक परिव्राजक रहता था, उसके पास आया और उसने आक्षेपपूर्वक (सन्देह निवारण हेतु) कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक से पूछा-'मागध ! (मगधदेश में जन्मे हुए)', (१) लोक सान्त (अन्त वाला) है या अनन्त (अन्तरहित) है ? (२) जीव सान्त है या अनन्त है ? (३) सिद्धि सान्त है या
अनन्त है ? (४) सिद्ध सान्त है या अनन्त है ? (५) किस मरण से मरता हुआ जीव संसार बढ़ाता है । ॐ और किस मरण से मरता हुआ जीव संसार घटाता है ? इतने प्रश्नों का उत्तर दो (कहो)।
13. In Shravasti also lived a Vaishalik Shravak (a person profoundly devoted to the words of Bhagavan Mahavir) named ascetic Pingal. One 45 day that Vaishalik Shravak ascetic Pingal came where Parivrajak 4i Skandak of Katyayan clan lived and inquisitively asked-O Maagadh 5 (Magadh born) ! (1) Is the Lok (occupied space) with or without limit ? S (2) Are the souls (jiva) with or without limit? (3) Is the state of Siddhi
(perfection or liberation) with or without limit ? (4) Are the Siddhas (perfected or liberated souls) with or without limit ? (5) By what kind of death a dying being increases the cycles of rebirth (samsar) and by what kind of death a dying being reduces the cycles of rebirth (samsar) ? Please answer these questions.
१४. तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते पिंगलएणं णियंठेणं वेसालीसावएणं इणमक्खेवं पुच्छिए समाणे संकिए कंखिए वितिगिंछिए भेदसमावन्ने कलुससमावन्ने णो संचाएइ पिंगलयस्स नियंठस्स ॐ वेसलियसावयस्स किंचि वि पमोक्खमक्खाइउं, तुसिणीए संचिट्ठइ।
१४. इस प्रकार उस कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक तापस से वैशालिक श्रावक पिंगल निर्ग्रन्थ ने पूर्वोक्त ॐ प्रश्न पूछे, तब स्कन्दक तापस शंकाग्रस्त हुआ, (इन प्रश्नों के उत्तर कैसे दूँ, मुझे इन प्रश्नों का उत्तर
कैसे आयेगा? इस प्रकार की) कांक्षा (मेरा उत्तर ठीक होगा या नहीं) उत्पन्न हुई; विचिकित्सा उत्पन्न हुई
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भगवतीसूत्र (१)
(238)
Bhagavati Sutra (1)
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