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10. Once Shraman Bhagavan Mahavir left Gunashila Chaitya in Rajagriha city and moved about in other inhabited areas.
१२. उस कृतंगला नगरी के निकट श्रावस्ती नगरी थी। उस श्रावस्ती नगरी में गर्दभाल नामक 5 परिव्राजक का शिष्य कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक नाम का परिव्राजक (तापस) रहता था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, इन चार वेदों, पाँचवें इतिहास (पुराण), छठे निघण्टु नामक कोश का तथा अंगों- उपांगों सहित वेदों का सारक ( स्मरण कराने वाला - पाठक), वारक (अशुद्ध पाठ बोलने से रोकने वाला), धारक (पढ़े हुए वेदादि को धारण करने वाला), पारक (वेदादि शास्त्रों का पारगामी), वेद
के छह अंगों का वेत्ता था। वह षष्ठितंत्र (सांख्यशास्त्र) विशारद था, वह गणितशास्त्र, शिक्षाशास्त्र,
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११. उस काल उस समय में कृतंगला नाम की नगरी थी। उसका वर्णन औपपातिकसूत्र के अनुसार है। उस कृतंगला नगरी के बाहर उत्तर- -पूर्व दिशा के मध्य ( ईशानकोण) में छत्रपलाशक नाम का चैत्य था। | चैत्य वर्णन औपपातिकसूत्र के अनुसार है । वहाँ किसी समय केवलज्ञान - केवलदर्शन के धारक श्रमण भगवान 5 महावीर स्वामी पधारे। यावत्-भगवान का समवसरण लगा। परिषद् धर्मोपदेश सुनने के लिए गई ।
11. During that period of time there was a city called Kritangala. Description as in Aupapatik Sutra. In the north-eastern direction outside the city there was a garden called Chhatrapalashak. Description of the Chaitya as in Aupapatik Sutra. Endowed with Keval-jnana and Kevaldarshan, Bhagavan Mahavir arrived there... and so on up to... Bhagavan arrived at Samavasaran (divine assembly). People came out to attend.
१२. तीसे णं कयंगलाए नयरीए अदूरसामंते सावत्थी नामं नयरी होत्था । वण्णओ । तत्थ णं सावत्थी नयरीए गद्दभालस्स अंतेवासी खंदए नामं कच्चायणसगोत्ते परिव्वायगे परिवसइ, रिउब्वेदजजुब्वेद - सामवेद - अथव्वणवेद इतिहासपंचमाणं निघंटुछट्ठाणं चउन्हं वेदाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं सार बारए पारए सडंगवी सट्ठितंतविसारए संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोतिसामयणे अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु पारिव्वायएसु य नयेसु सुपरिनिट्ठिए यावि होत्था ।
व्याकरणशास्त्र, छन्दशास्त्र, निरुक्त (व्युत्पत्ति) शास्त्र और ज्योतिषशास्त्र, इन सब शास्त्रों में तथा दूसरे
बहुत से ब्राह्मण और परिव्राजक - सम्बन्धी नीति और दर्शनशास्त्रों में भी अत्यन्त निष्णात था।
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12. Not far from the city of Kritangala was a city called Shravasti. In
fi Shravasti lived a Parivrajak (one who renounces everything and takes to peripatetic life) named Skandak. He belonged to Katyayan clan (gotra) and was a disciple of Parivrajak Gardhabhal. He was a reciter (saarak), F amender (vaarak ), recollector (dhaarak) and expert of four Vedas namely F Rigveda, Yajurveda, Saamveda, Atharvaveda, fifth history (Purana), 5 sixth Nighantu (Vedic lexicon) and all supplemental works on the Vedas. फ He was a scholar of six auxiliary parts of the Vedas. He was a master of Shashtitantra (Sankhya philosophy). He was also an accomplished
द्वितीय शतक : प्रथम उद्देशक
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Second Shatak: First Lesson
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