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5555555555555555555555555558 + [प्र. २ ] भगवन् ! पूर्वोक्त स्वरूप वाले निर्ग्रन्थ के जीव को किस शब्द से कहना चाहिए?
[उ. ] गौतम ! पूर्वोक्त स्वरूप वाले निर्ग्रन्थ को 'सिद्ध' कहा जा सकता है, 'बुद्ध' कहा जा सकता ॐ है, 'मुक्त' कहा जा सकता है, 'पारगत' (संसार के पार पहुँचा हुआ) कहा जा सकता है, 'परम्परागत' E (अनुक्रम से संसार के पार पहुँचा हुआ) कहा जा सकता है। उसे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत, अन्तकृत् म एवं सर्वदुःखप्रहीण कहा जा सकता है।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कहकर भगवान गौतम स्वामी + श्रमण भगवान महावीर को वन्दना-नमस्कार करके फिर संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते हैं।
9. (Q. 1] Bhante ! Does a mritadi (alms eating; one who eats only achitt and faultless food) ascetic, who has eliminated rebirth, who has eliminated vagaries of life... and so on up to... , who has accomplished his mission, not get reborn again as human and other beings?
(Ans.) Yes, Gautam ! A mritadi ascetic as described here does not get reborn again as human and other beings.
[Q.2] Bhante ! What should the aforesaid ascetic be called ? ।
(Ans.] Gautam ! He may be called Siddha (perfected one), he may be called Buddha (enlightened one), he may be called Mukta (liberated one), 41 he may be called Paaragat (one who has reached across the ocean of rebirths), he may be called Paramparagat (who has gradually crossed
the ocean of rebirths), and he may also be called Siddha, Buddha, 41 Mukta, Paaragat and Paramparagat (all together).
“Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities. Fachlich ofaluteh SKANDAK PARIVRAJAK
१०. तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ।
११. तेणं कालेणं तेणं समएणं कयंगला नामं नयरी होत्था। वण्णओ। तीसे णं कयंगलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए छत्तपलासए नामं चेइए होत्था। वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे उप्पण्णनाण-दसणधरे जाव समोसरणं। परिसा निगच्छति।
१०. एक समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी राजगृह नगर के गुणशील चैत्य (उद्यान) से विहार कर अन्य जनपदों में विचरने करने लगे।
भगवतीसूत्र (१)
(236)
Bhagavati Sutra (1)
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