________________
)))5555
)))
)))))
5))))))))))))))))))))))
% %%% %%%%%% %%%% %%%%%%%%%% %%% %% % %%B
8. [Q. 1] Bhante ! Does a mritadi (alms eating; one who eats only cchitt and faultless food) ascetic, who has not eliminated rebirth (bhava nirodh), who has not eliminated vagaries of life (bhava-prapanch nirodh), who has not destroyed the cycles of rebirth (samsar), who has not destroyed the karma responsible for his cyclic rebirth (samsarvedaniya karma), who has not terminated the cyclic rebirths in four genuses, who has not terminated the karma responsible for his cyclic rebirths in four genuses, who has not attained the desired (nishtitarth), and who has not accomplished his mission (karaniya), get reborn again as human and other beings?
(Ans.) Yes, Gautam ! A mritadi ascetic as described here gets reborn again as human and other beings.
[प्र. २ ] से णं भंते ! किं ति वत्तव् सिया ?
[उ. ] गोयमा ! पाणे' त्ति वत्तव्वं सिया, भूते' त्ति वत्तव्वं सिया, जीवे' त्ति वत्तव्वं सिया, सत्ते' त्ति वत्तव्वं सिया, विष्णू' त्ति वत्तव्यं सिया, वेदे' त्ति वत्तव्वं सिया-पाणे भूए जीवे सत्ते विष्णू वेदे त्ति वत्तव्वं सिया। भ [प्र. ] से केणटेणं भंते ! पाणे त्ति वत्तव्वं सिया जाव वेदे त्ति वत्तव्वं सिया ? ॐ [उ. ] गोयमा ! जम्हा आणमइ वा पाणमइ वा उस्ससइ वा नीससइ वा तम्हा पाणे त्ति वत्तव्वं सिया। म जम्हा भूते भवति भविस्सति य तम्हा भूए त्ति वत्तव्यं सिया। जम्हा जीवे जीवइ जीवत्तं आउयं च कम्म
उवजीवइ तम्हा जीवे त्ति वत्तव्वं सिया। जम्हा सत्ते सुभासुभेहिं कम्मेहिं तम्हा सत्ते त्ति वत्तव्यं सिया। जम्हा + तित्त-कडुय-कसायंऽबिल-महुरे रसे जाणइ तम्हा विष्णू त्ति वत्तव्वं सिया। जम्हा वेदेइ य सुह-दुक्खं ॥ तम्हा वेदे त्ति वत्तव्वं सिया। से तेणटेणं जाव पाणे त्ति वत्तव्वं सिया जाव वेदे त्ति वत्तव्वं सिया।।
[प्र. २ ] भगवन् ! पूर्वोक्त निर्ग्रन्थ के जीव को किस शब्द से कहना चाहिए? म [उ. ] गौतम ! उसे कदाचित् 'प्राण' कहना चाहिए, कदाचित् 'भूत' कहना चाहिए, कदाचित् 'जीव'
कहना चाहिए, कदाचित् ‘सत्व' कहना चाहिए, कदाचित् 'विज्ञ' कहना चाहिए, कदाचित् 'वेद' कहना चाहिए और कदाचित् 'प्राण, भूत, जीव, सत्त्व, विज्ञ और वेद' कहना चाहिए। ___[प्र. ] हे भगवन् ! उसे 'प्राण' कहना चाहिए, यावत्-'वेद' कहना चाहिए, इसका क्या कारण है ? + [उ. ] गौतम ! पूर्वोक्त निर्ग्रन्थ का जीव, बाह्य और आभ्यन्तर उच्छ्वास तथा निःश्वास लेता और
छोड़ता है, इसलिए उसे 'प्राण' कहना चाहिए। वह भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्यकाल में
रहेगा, इसलिए उसे 'भूत' कहना चाहिए। तथा वह जीव होने से जीता है, जीवत्व एवं आयुष्यकर्म का + अनुभव करता है, इसलिए उसे 'जीव' कहना चाहिए। वह शुभ और अशुभ कर्मों से सम्बद्ध है, इसलिए 5 E उसे 'सत्व' कहना चाहिए। वह तिक्त (तीखा), कटु, कषाय (कसैला), खट्टा और मीठा, इन रसों का ॐ वेत्ता (ज्ञाता) है, इसलिए उसे 'विज्ञ' कहना चाहिए, तथा वह सुख-दुःख का वेदन (अनुभव) करता है, भगवतीसूत्र (१)
(234)
Bhagavati Sutra (1)
9
9
百步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步%%$$$EEEEE LA
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org