________________
卐
6 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 555 2
beings and other beings. Samvar-to have restraint over five senses and
5 mind. Vivek - discerning capacity or sagacity. Vyutsarg-to stop 5 activities of the body and rid oneself from fondness for the body.
45
卐
திதத்ததபூ****மிமிதிமிதிததமி****த****தமிழ****மிதி
卐
卐
Goal of these practices-Samayik-to avoid bondage of new karmas and to shed already acquired karmas. Pratyakhyan-to block the sources of inflow of karmas. Samyam-to be free of inflow of karmas. Samvar-to have restraint over five senses and mind and stop the inflow of karmas. Vivek-to abandon the worthless, to know what is worth knowing and to accept what is useful. Vyutsarg-to become completely dissociated. चारों में अप्रत्याख्यान क्रिया : समान रूप से UNIFORMITY OF NON-RENUNCIATION
[उ.] गोयमा ! अविरतिं पडुच्च; से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ सेट्ठिस्स य तणुयस्स जाव कज्जइ । २५. [ प्र. ] ‘भगवन् !' ऐसा कहकर भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन
नमस्कार किया। तत्पश्चात् ( वन्दन - नमस्कार करके) वे इस प्रकार बोले- भगवन् ! क्या श्रेष्ठी श्रीमन्त 5 और दरिद्र को, रंक को और क्षत्रिय (राजा) को अप्रत्याख्यान क्रिया (प्रत्याख्यान क्रिया का अभाव अथवा अप्रत्याख्यानजन्य कर्मबन्ध) समान होती है ?
फ्र
२५. [ प्र. ] 'भंते !' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति, २ एवं वदासी - से नूनं भंते! सेट्ठिस्स य तणुयस्स य किविणस्स य खत्तियस्स य समा चेव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ ? [उ. ] हंता, गोयमा ! सेट्ठिस्स य जाव अपच्चक्खाणकिरिया कज्जइ ।
[प्र. ] से केणट्टे भंते !
[उ. ] हाँ, गौतम ! श्रेष्ठी यावत् क्षत्रिय राजा ( इन सब ) के द्वारा अप्रत्याख्यान क्रिया समान की जाती है; (अर्थात्-अप्रत्याख्यानजन्य कर्मबन्ध भी समान होता है ।)
[प्र. ] भगवन् ! आप ऐसा किस हेतु से कहते हैं ?
[उ. ] गौतम ! ( इन चारों की) अविरति को लेकर, ऐसा कहा जाता है कि श्रेष्ठी और दरिद्र, कृपण
( रंक) और राजा (क्षत्रिय) इन सबकी अप्रत्याख्यान क्रिया (प्रत्याख्यान क्रिया से विरति या तज्जन्यकर्मबन्धता) समान होती है।
भगवतीसूत्र ( १ )
25. [Q.] ‘Bhante ! Uttering thus Gautam paid homage and obeisance
卐
to Bhagavan Mahavir and submitted-Bhante! Does a merchant and a pauper, a beggar and a king (kshatriya) have the same apratyakhyan - 5
kriya (act and consequence of non-renunciation in terms of karmic bondage)?
[Ans.] Yes, Gautam ! A merchant and a pauper, a beggar and a king (kshatriya) have the same apratyakhyan-kriya (act and consequence of non-renunciation in terms of karmic bondage).
(210)
Jain Education International
卐
Bhagavati Sutra (1)
फफफफफफफफफफ
For Private & Personal Use Only
695959 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5955555959595555 5 5 55955 59595959595959595952
www.jainelibrary.org