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[प्र. २ ] से केणट्टेणं ? 5 [उ. ] गोयमा ! दब्बलेसं पुडुच्च ततियपदेणं, भावलेसं पुडुच्च चउत्थपदेणं। [३] एवं जाव
सुक्कलेसा। _ [प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ? ___ [उ. ] गौतम ! द्रव्यलेश्या की अपेक्षा तृतीय पद से (अर्थात्-गुरु-लघु) जानना चाहिए, और भावलेश्या की अपेक्षा चौथे पद से (अर्थात् अगुरु-लघु) जानना चाहिए। [ ३ ] इसी प्रकार शुक्ललेश्या तक जानना चाहिए।
[Q.2] Bhante ! Why is it so? ____ [Ans.] Gautam ! In context of dravya leshya (physical complexion) it conforms to the third term (guru-laghu), but in context of bhaava leshya (mental complexion) it conforms to the fourth term (aguru-laghu). [3] Same is true (for all leshyas) up to shukla leshya (white complexion).
११. दिट्ठी-दसण-नाण-अण्णाण-सणाओ चउत्थपदेणं णेतव्याओ।
११. दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, अज्ञान और संज्ञा को भी चतुर्थ पद से (अगुरु-लघु) जानना चाहिए। ____11. Drishti (outlook), darshan (perception/faith), jnana (knowledge), f ajnana (ignorance) and sanjna (sentience) conform to the fourth term fi (i.e. they are aguru-laghu).
१२. हेछिल्ला चत्तारि सरीरा नेयव्वा ततियएणं पदेणं। कम्मयं चउत्थएणं पदेणं।
१२. आदि के चारों शरीरों-औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस्शरीर-को तृतीय पद से (गुरु-लघु) जानना चाहिए, तथा कार्मणशरीर को चतुर्थ पद से (अगुरु-लघु) जानना चाहिए।
12. The first four types of shariras (bodies), audarik (gross physical), vaikriya (transmutable), aahaarak (telemigratory) and taijas (fiery) conform to the third term (i.e. they are guru-laghu) and the karmic body conforms to the fourth term (i.e. it is aguru-laghu).
१३. मणजोगों वइजोगो चउत्थएणं पदेणं। कायजोगो ततिएणं पदेणं।
१३. मनोयोग और वचनयोग को चतुर्थ पद से (अगुरु-लघु) और काययोग को तृतीय पद से 5. (गुरु लघु) जानना चाहिए।
13. Manoyoga (mind association) and vachan yoga (speech association) conform to the fourth term (i.e. they are aguru-laghu) and kaya yoga (body association) conforms to the third term (i.e. it is guru-laghu).
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भगवतीसूत्र (१)
(198)
Bhagavati Sutra (1)
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