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[Ans.) Gautam ! One who is savirya (with potency, resolve and valour) wins and one who is viryaheen (without potency, resolve and valour) loses.
[Q.] Bhante ! What is the reason for this... and so on up to... viryaheen loses. ___ [Ans.] Gautam ! A person who has not bound (baddha), touched (sprishtra), ... and so on up to... is not about to fructify (abhisamanvagat) the potency impeding karmas (virya-vighatak karma) and his said karmas have not fructified (udirna) but are in the subdued (upashant) state, such person wins. A person who has bound (baddha), touched (sprishtra), ... and so on up to... is about to fructify (abhisamanvagat) the potency impeding karmas (virya-vighatak karma) and his said karmas have fructified (udirna) and are not in the pacified (upashant) state, such person loses. That is why, Gautam ! It is said that one who is savirya (with potency, resolve and valour) wins and one who is viryaheen (without potency, resolve and valour) loses. सवीर्यत्व-अवीर्यत्व की प्ररूपणा ABOUT POTENCY
१०.[प्र. ] जीवा णं भंते ! किं सवीरिया ? अवीरिया ? [उ. ] गोयमा ! सवीरिया वि, अवीरिया वि। [प्र. ] से केणद्वेणं ?
[उ. ] गोयमा ! जीवा दुविहा पण्णत्ता; तं जहा-संसारसमावनगा या, असंसारसमावनगा य। तत्थ णं जे ते असंसारसमावन्नगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं अवीरिया। तत्थ णं जे ते संसारसमावनगा ते दुविहा पन्नत्ता; तं जहा-सेलेसिपडिवनगा य, असेलेसिपडिवनगा य। तत्थ णं जे ते सेलेसिपडिवनगा ते णं लद्धिवीरिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं अवीरिया। तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवनगा ते णं लद्धिवीरिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं सवीरिया वि अवीरिया वि। से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चति जीवा दुविहा पण्णत्ता; तं जहा-सवीरिया वि अवीरिया वि।
१०. [प्र. ] भगवन् ! क्या जीव सवीर्य हैं अथवा अवीर्य हैं ? [उ. ] गौतम ! जीव सवीर्य भी हैं, अवीर्य भी हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं ?
[उ. ] गौतम ! जीव दो प्रकार के हैं-संसारसमापन्नक (संसारी) और असंसारसमापन्नक (सिद्ध)। इनमें जो जीव असंसारसमापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं, वे अवीर्य (करणवीर्य से रहित) हैं। इनमें जो जीव संसारसमापन्नक हैं, वे दो प्रकार के हैं, यथा-शैलेशीप्रतिपन्न और अशैलेशीप्रतिपन्न। इनमें जो शैलेशीप्रतिपन्न हैं, वे लब्धिवीर्य की अपेक्षा सवीर्य हैं और करणवीर्य की अपेक्षा अवीर्य हैं। जो
प्रथम शतक : अष्टम उद्देशक
(189)
First Shatak: Eighth Lesson
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