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________________ 855555 55555558 them, careful about them, acting for them and having inclination for them; dies at that moment then he is born in the hell. That is why, Gautam ! Some are born in hell and some not. म २०. [प्र. १ ] जीवे णं भंते ! गभगते समाणे देवलोगेसु उववज्जेज्जा ? ॐ [उ. ] गोयमा ! अत्यंगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा। ॐ [प्र. २ ] से केणटेणं ? [उ. ] गोयमा ! से णं सन्नी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स ॐ वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोचा निसम्म ततो भवति संवेगजातसड्ढे तिव्वधम्माणुरागरत्ते, से णं जीवे धम्मकामए पुण्णकामए सग्गकामए मोक्खकामए, धम्मकंखिए पुण्णकंखिए सग्गकंखिए ऊ मोक्खकंखिए, धम्मपिवासिए पुण्णपिवासिए सग्गपिवासिए मोक्खपिवासिए, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे . तदज्झवसिते तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पितकरणे तब्भावणाभाविते एतंसि णं अंतरंसि कालं करेग्ज देवलोएसु उववज्जति; से तेणटेणं गोयमा ! २०. [प्र. १ ] भगवन् ! गर्भस्थ जीव क्या देवलोक में जाता है ? [उ. ] हे गौतम ! कोई जीव जाता है, और कोई नहीं जाता। [प्र. २ ] भगवन् ! इसका क्या कारण है ? [उ. ] गौतम ! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय और सब पर्याप्तियों से पर्याप्त जीव, तथारूप श्रमण । या माहन के पास एक भी श्रेष्ठ धार्मिक सुवचन सुनकर, अवधारण करके शीघ्र ही संवेग से धर्मश्रद्धालु बनकर, धर्म में तीव्र अनुराग से रक्त होकर, वह धर्म का कामी, पुण्य का कामी, स्वर्ग का कामी, मोक्ष * का कामी, धर्माकांक्षी, पुण्याकांक्षी, स्वर्ग का आकांक्षी, मोक्षाकांक्षी तथा धर्मपिपासु, पुण्यपिपासु, # स्वर्गपिपासु एवं मोक्षपिपासु, उसी में चित्त वाला, उसी में मन वाला, उसी में आत्मपरिणाम वाला, उसी ॥ + में अध्यवसाययुक्त, उसी में तीव्र प्रयत्नशील, उसी में सावधानतायुक्त, उसी के लिए अर्पित होकर क्रिया ॐ करने वाला, उसी की भावनाओं से भावित (उसी के संस्कारों से संस्कारित) जीव ऐसे ही समय में मृत्यु 9 को प्राप्त हो तो देवलोक में उत्पन्न होता है। इसलिए हे गौतम ! कोई जीव देवलोक में उत्पन्न होता है और ॐ कोई नहीं उत्पन्न होता। 20. [Q. 1] Bhante ! Does a soul living as fetus in a womb take birth among divine beings ? [Ans.] Gautam ! Some are born and some not. [Q.2] Bhante ! Why is it so ? (Ans.] Gautam ! A sentient five-sensed being (highly endowed) living in a womb fully developed in all respects, on hearing even a single noble and pious word from an ascetic (Shraman or Brahmin) conforming to the | भगवतीसूत्र (१) (174) Bhagavati Sutra (1) 8555555555555555555555555555555555555 5555555555555555555555555555555555555 955555555555555555555555553 卐)卐5555555555555 卐 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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