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[उ. ] गोयमा ! से णं सनी पंचिंदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वीरियलद्धीए वेउब्वियलद्धीए । + पराणीयं आगयं सोच्चा निसम्म पदेसे निच्छुभति, निच्छुभित्ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहण्णइ, ॐ वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहण्णित्ता चाउरंगिणिं सेणं विउव्वइ, चाउरंगिणिं सेणं विउव्वेत्ता चाउरंगिणीए म सेणाए पराणीएणं सद्धिं संगामं संगामेइ। से णं जीवे अत्थकामए रज्जकामए भोगकामए कामकामए, # अत्थकंखिए रज्जकंखिए भोगकंखिए कामकंखिए, अत्थपिवासिते रजपिवासिते भोगपिवासिए
कामपिवासिते, तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदझवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्भावणाभाविते एतंसि णं अंतरंसि कालं करेज नेरतिएसु उववज्जइ; से तेणटेणं गोयमा ! जाव अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा।
[प्र. २ ] भगवन् ! इसका क्या कारण है? म [उ. ] गौतम ! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय और समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त जीव, वीर्यलब्धि 2 (शक्ति संपन्नता) द्वारा, वैक्रियलब्धि (नाना रूप निर्माण की योग जनित सामर्थ्य) द्वारा शत्रुसेना को आई 5 हुई सुनकर, अवधारण (विचार) करके अपने आत्म-प्रदेशों को गर्भ से बाहर निकालता है, बाहर
निकालकर वैक्रियसमुद्घात करके चतुरंगिणी सेना की विक्रिया करके उस सेना से शत्रुसेना के साथ युद्ध में # करता है। वह अर्थ (धन) का कामी, राज्य का कामी, भोग का कामी, काम का कामी, अर्थाकांक्षी, म राज्याकांक्षी, भोगाकांक्षी, कामाकांक्षी (अर्थादि का लोलुप) तथा अर्थ का प्यासा, राज्य का प्यासा, '
भोगपिपासु एवं कामपिपासु, उन्हीं में चित्त वाला, उन्हीं में मन वाला, उन्हीं में आत्मपरिणाम वाला, उन्हीं में ,
अध्यवसित, उन्हीं में प्रयत्नशील, उन्हीं में सावधानतायुक्त, उन्हीं के लिए क्रिया करने वाला और उन्हीं 9 भावनाओं से भावित (उन्हीं संस्कारों में ओतप्रोत), यदि उसी (समय) में मृत्यु को प्राप्त हो तो वह नरक में ! में उत्पन्न होता है। इसलिए हे गौतम ! कोई जीव नरक में उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता। fi (Q. 2] Bhante ! Why is it so ?
___ [Ans.] Gautam ! A sentient five-sensed being (highly endowed) living si in a womb fully developed in all respects, on hearing about attacking fi inimical forces and after due consideration pushes out its soul-space
points with the help of its potency and special power of transmutation (vaikriya labdhi). Using the process of Vaikriya Samudghat (self
controlled transformation or mutation) it creates a four pronged army fi and fights with the inimical forces. If such a being; having desire fi (kaamana) of wealth, desire of kingdom, desire of mundane pleasures,
desire of carnal pleasures, craving (kaanksha) for wealth, craving for kingdom, craving for mundane pleasures, craving for carnal pleasures, obsessed (pipasa) with wealth, obsessed with kingdom, obsessed with
mundane pleasures, obsessed with carnal pleasures; with his heart in i them, with his mind in them, with his spiritual inclination F (atmaparinaam) in them, persevering (adhyavasit) for them, striving for 4
माना
प्रथम शतकः सप्तम उद्देशक
(173)
First Shatak: Seventh Lesson
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