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विवेचन : इस सन्दर्भ में आयुर्वेद के ग्रन्थ चरक की भी ऐसी मान्यता है कि जीव चार तन्मात्रा (स्पर्श, रस,
रूप और गंध तन्मात्रा) को साथ लेकर नये जन्म में प्रवेश करता है । ( चरक संहिता २१३१) अष्टांग हृदय के अनुसार गर्भ में प्रवेश करने वाला प्राणी सर्वप्रथम ओज आहार ग्रहण करता है। उसके पश्चात् शुक्ल - शोणित 5 का आहार ग्रहण करता है। (अष्टांग हृदय १७/२९)
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Elaboration-In this context Charak Samhita, an Ayurvedic text, also states that while taking a new birth soul comes along with four subtle attributes (tanmatra) of touch, taste, form and smell (Charak Samhita, 5 2131). According to Ashtanga Hridaya (an Ayurvedic text ) the first 5 intake of a soul entering a womb is oj (radiance or energy). After that it ingests blood (shukla or shonit) (Ashtanga Hridaya 17/29).
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१८. [.] अम्मापेतिए णं भंते ! सरीरए केवइयं कालं संचिट्ठति ?
[उ.] गोयमा ! जावतियं से कालं भवधारणिज्जे सरीरए अव्वावन्ने भवति एवतियं कालं संचिट्ठति । 5 अहे णं समए समए वोक्कसिज्जमाणे २ चरमकालसमयंसि वोच्छिन्ने भवइ ।
१८. [ प्र. ] भगवन् ! माता और पिता के अंग सन्तान के शरीर में कितने काल तक रहते हैं ?
[उ.] गौतम ! सन्तान का भवधारणीय शरीर जितने समय तक रहता है, उतने समय तक वे अंग रहते हैं; और जब भवधारणीय शरीर समय-समय पर हीन (क्षीण) होता हुआ अन्तिम समय नष्ट हो जाता है; तब माता-पिता के वे अंग भी नष्ट हो जाते हैं।
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18. [Q.] Bhante ! For how long do the maternal and paternal parts remain in the body of the offspring?
[Ans.] Gautam ! These parts remain as long as the incarnation sustaining body (bhavadharaniya sharira) lasts. And after gradual weakening when the incarnation sustaining body gets destroyed at the last moment of life, these parental parts also get destroyed.
१९. [ प्र. १ ] जीवे णं भंते ! गब्भगते समाणे नेरइएसु उववज्जेज्जा ?
[ उ. ] गोयमा ! अत्थेगइए उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा ।
१९. [ प्र. १ ] भगवन् ! गर्भ में रहा हुआ जीव क्या नारकों में उत्पन्न होता है ?
[उ.] गौतम ! कोई उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता ।
19. [Q. 1] Bhante ! Does a soul living as fetus in a womb take birth among infernal beings?
[Ans.] Gautam ! Some are born in hell and some not.
[प्र. २] से केणट्टेणं ?
भगवतीसूत्र (१)
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Bhagavati Sutra (1)
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