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________________ 855555555555555555555555555555555 ) )) )) )) )) )) ) ))) )) ) ) ) )) )) ) ) ) 41 to... that of touch as well as bone, marrow, hair, beard, body-hair and + nails. That is why, Gautam ! A soul conceived in a womb does not have : any excreta. १५. [प्र. १ ] जीवे णं भंते ! गभगते समाणे पभू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए ? [उ. ] गोयमा ! णो इणढे समठे। [प्र. २ ] से केणट्टेणं ? [उ. ] गोयमा ! जीवे णं गभगते समाणे सव्वतो आहारेति, सव्वतो परिणामेति, सब्बतो उस्ससति, सव्वतो निस्ससति, अभिक्खणं आहारेति, अभिक्खणं परिणामेति, अभिक्खणं उस्ससति अभिक्खणं निस्ससति, आहच्च आहारेति, आहच्च परिणामेति, आहच्च उस्ससति, आहच्च नीससति। मातुजीवरसहरणी पुत्तजीवरसहरणी मातुजीवपडिबद्धा पुत्तजीवफुडा तम्हा आहारेइ, तम्हा परिणामेति, । अवरा वि य णं पुत्तजीवपडिबद्धा माउजीवफुडा तम्हा चिणाति, तम्हा उवचिणाति; से तेणट्टेणं० जाव नो पभू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए। म १५. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या गर्भ में रहा हुआ जीव मुख से कवलाहार (ग्रासरूप में आहार) करने में समर्थ है? [उ. ] गौतम ! ऐसा होना सम्भव नहीं है। [प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? [उ.] गौतम ! गर्भगत जीव सब ओर से (सारे शरीर से) आहार करता है, सारे शरीर से + परिणमाता है, सर्वात्मना (सारे शरीर से) उच्छ्वास लेता है, सर्वात्मना निःश्वास लेता है, बार-बार के आहार करता है, बार-बार (उसे) परिणमाता है, बार-बार उच्छ्वास लेता है, बार-बार निःश्वास ॐ लेता है, कदाचित् आहार करता है, कदाचित् परिणमाता है, कदाचित् उच्छ्वास लेता है, कदाचित् 卐 निःश्वास लेता है, तथा पुत्र (गर्भगत) के जीव को रस पहुँचाने में कारणभूत और माता के रस लेने में कारणभूत जो मातृजीवरसहरणी नाम की नाड़ी है वह माता के जीव के साथ सम्बद्ध है और पुत्र (गर्भगत) के जीव के साथ जुड़ी हुई है। उस नाड़ी द्वारा वह (गर्भगत जीव) आहार लेता है और आहार ॥ को परिणमाता है तथा पुत्रजीवरसहरणी नाम की एक और नाड़ी है, जो पुत्र के जीव के साथ (नाभिक से) सम्बद्ध है और माता के जीव के साथ जुड़ी हुई होती है, उससे (गर्भगत) पुत्र का जीव आहार का 卐 चय करता है और उपचय करता है। इस कारण से हे गौतम ! गर्भगत जीव मुख द्वारा कवलरूप आहार लेने में समर्थ नहीं है। 15. (Q. 1) Bhante ! Is a soul conceived in a womb capable of consuming morsel-food (havalaahaar) through mouth ? [Ans.] Gautam ! That is not possible. [Q. 2] Bhante ! Why do you say so ? ) )) )) 卐क)))))))))))5555555555555555) )) ) 5555555555))))) भगवतीसूत्र (१) (170) Bhagavati Sutra (1) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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