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१३. [प्र. ] जीवे णं भंते ! गभगए समाणे किमाहारमाहारेति ? [उ. ] गोयमा ! जं से माता नाणाविहाओ रसविगतीओ आहारमाहारेति तदेक्कदेसेणं ओयमाहारेति। १३. [प्र. ] भगवन् ! गर्भ में गया (रहा) हुआ जीव क्या आहार करता है?
[उ. ] गौतम ! उसकी माता जो नाना प्रकार की (दुग्धादि) रसविकृतियों का आहार करती है; उसके एक भाग के साथ गर्भगत जीव माता के आर्तव का आहार करता है।
13. (Q.) Bhante ! What is the intake (aahaar) of a soul conceived in a womb ?
(Ans.) Gautam ! Along with the mother's blood (aartava) it takes a portion of various flawed (with respect to soul) juices (like milk) that the mother consumes.
१४. [प्र. १ ] जीवस्स णं भंते ! गभगतस्स समाणस्स अत्थि उच्चारे इ वा पासवणे इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा ?
[उ. ] णो इणढे समठे। [प्र. २ ] से केणठेणं ?
[उ. ] गोयमा ! जीवे णं गभगए समाणे जं आहारेति तं चिणाइ तं सोतिंदियत्ताए जाव फासिंदियत्ताए अहि-अद्विमिंज-केस-मंसु-रोम-नहत्ताए, से तेणट्टेणं०।
१४. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या गर्भ में रहे हुए जीव के मल होता है, मूत्र होता है, कफ होता है, नाक का मैल होता है, वमन होता है, पित्त होता है ?
[उ. ] गौतम ! गर्भगत जीव के ये सब (मलमूत्रादि) नहीं होते हैं। [प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ?
[उ. ] हे गौतम ! गर्भ में जाने पर जीव जो आहार करता है, जिस आहार का चय करता है, उस आहार को श्रोत्रेन्द्रिय (कान) के रूप में यावत् स्पर्शेन्द्रिय के रूप में तथा हड्डी, मज्जा, केश, दाढ़ीमूंछ, रोम और नखों के रूप में परिणत करता है। इसलिए हे गौतम ! गर्भ में गये हुए जीव के मलमूत्रादि नहीं होते।
14. [Q. 1] Bhante ! Does a soul conceived in a womb have stool, urine, phlegm, nose-mucus, vomit and bile?
[Ans.] Gautam ! A soul conceived in a womb does not have all these. [Q. 2] Bhante ! Why do you say so ?
(Ans.] Gautam ! All the intake and assimilation by a soul conceived in a womb is transformed by it into sense organ of hearing... and so on up
| प्रथम शतक: सप्तम उद्देशक
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First Shatak : Seventh Lesson
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