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म २६. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या जीव और पुद्गल परस्पर सम्बद्ध हैं, परस्पर एक-दूसरे से स्पृष्ट हैं ?
परस्पर गाढ़ सम्बद्ध (मिले हुए) हैं, परस्पर स्निग्धता (चिकनाई) से प्रतिबद्ध (जुड़े हुए) हैं। (अथवा) ॐ परस्पर घट्टित (गाढ़) होकर रहे हुए हैं ?
[उ. ] हाँ, गौतम ! ये परस्पर इसी प्रकार रहे हुए हैं। 4 26. (Q. 1] Bhante ! Are soul and matter mutually associated, mutually
touching, mutually assimilated, mutually adhered to (like with glue) or
mutually fused ? 4i (Ans.] Yes, Gautam ! They exist like that.
[प्र. २ ] से केणट्टेणं भंते ! जाव चिटुंति ?
[उ. ] गोयमा ! से जहानामए हरदे सिया पुण्णे पुण्णप्पमाणे वोलट्टमाणे वोसट्टमाणे समभरघडत्ताए * चिट्ठति, अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरदंसि एगं महं नावं सदासर्व सयछिदं ओगाहेजा। से नूणं गोयमा ! सा म णावा तेहिं आसवद्दारेहिं आपूरमाणी आपूरमाणी पुण्णा पुण्णप्पमाणा बोलट्टमाणा वोसट्टमाणा * समभरघडत्ताए चिट्ठति ? हंता, चिट्ठति।
से तेणटेणं गोयमा ! अत्थि णं जीवा य जाव चिट्ठति। म [प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं जीव और पुद्गल इस प्रकार रहे हुए हैं ? 3 [उ. ] गौतम ! जैसे कोई एक तालाब हो, वह जल से पूर्ण हो, कि पानी से लबालब भरा हुआ हो, फ़ कि पानी से छलक रहा हो और पानी से बढ़ रहा हो, वह पानी से भरे हुए घड़े के समान है। उस
तालाब में कोई पुरुष एक ऐसी बड़ी नौका, जिसमें सौ छोटे छिद्र हों (अथवा अनेक छेद वाली) और सौ ॐ बड़े छिद्र हों; डाल दे तो हे गौतम ! वह नौका, उन-उन छिद्रों द्वारा पानी से भरती हुई, अत्यंत भरती फ़ हुई, जल से परिपूर्ण, पानी से लबालब भरी हुई, पानी से छलकती हुई, बढ़ती हुई क्या भरे हुए घड़े के 5 समान हो जायेगी?
(गौतम-) हाँ, भगवन् ! हो जायेगी। (भगवान-) इसलिए हे गौतम ! मैं कहता हूँ-यावत् जीव और पुद्गल परस्पर घट्टित (घुले-मिले) होकर रहे हुए हैं। अर्थात्-[इसी प्रकार संसाररूपी तालाब के ॐ पुद्गलरूपी जल में जीवरूपी सछिद्र नौका डूब जाने पर पुद्गल और जीव एकमेक हो जाते हैं।] + [Q.2] Bhante ! Why do you say that soul and matter exist... and so on
up to... mutually fused ? 卐 [Ans.] Gautam ! Suppose there is a pond filled with water, brimming $ with overflowing and ever increasing water; it is like a pitcher filled with
water. In that pond suppose someone puts a large boat with hundreds of small and large holes (or with many holes). Then, Gautam ! Would that boat not be filled with water, brimming with overflowing and ever increasing water and resemble a pitcher filled with water ?
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| भगवतीसूत्र (१)
(156)
Bhagavati Sutra (1)
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