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[प्र. २ ] से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चति अट्ठविहा जाव जीवा कम्मसंगहिता ?
[ उ. ] गोयमा ! जहानामए केई पुरिसे वत्थिमाडोवेति, वत्थिमाडोवित्ता उप्पिं सितं बंधति, बंधित्ता 5 मझे णं टिंबंधति, मज्झे गंटिं बंधित्ता उवरिल्लं गंटिं मुयति, मुइत्ता उवरिल्लं देतं वामेति, उवरिल्लं देसं वामेत्ता उवरिल्लं आउयायस्स पूरेइ, पूरित्ता उप्पिं सितं बंधति, बंधित्ता मझिल्लं गठिं मुयति । से नूणं गोतमा ! से आउयाए तस्स वाउययस्स उप्पिं उवरितले चिट्ठति ?
हंता, चिट्ठति । से तेणद्वेणं जाव जीवा कम्मसंगहिता ।
[प्र. २ ] भगवन् ! इस प्रकार कहने का क्या कारण है कि लोक की स्थिति आठ प्रकार की है और फ्र यावत् जीवों को कर्मों ने संग्रह कर रखा है ?
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[ उ. ] गौतम ! जैसे कोई पुरुष चमड़े की मशक को वायु से (हवा भरकर ) फुलावे; फिर उस मशक 5 का मुख बाँध दे, तत्पश्चात् मशक के बीच के भाग में गाँठ बाँधे; फिर मशक का मुँह खोल दे और उसके भीतर की हवा निकाल दे; तदनन्तर उस मशक के ऊपर के (खाली) भाग में पानी भरे; फिर मशक का मुख बन्द कर दे, तत्पश्चात् उस मशक की बीच की गाँठ खोल दे, तो हे गौतम ! वह भरा हुआ पानी क्या उस हवा के ऊपर ही ऊपर के भाग में रहेगा ? (गौतम) हाँ, भगवन् ! रहेगा। (भगवान) हे गौतम! इसी उदाहरण द्वारा मैं कहता हूँ कि यावत्-कर्मों को जीवों ने संग्रह कर रखा है।
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[Q. 2] Bhante! Why it is said that Lok-sthiti (structure of universe) is eight tiered... and so on up to... souls are bonded (samgrihit) by karma? [Ans.] Gautam ! Suppose someone fills a leather bag with air and ties its open-end. After that he ties fast the middle of the bag and opens the 卐 knot at the open-end to remove the air from the upper half. He then fills the empty upper half of the bag with water and ties the open-end once again. After this he unties the middle of the bag. Now, Gautam would the फ water filled in the bag remain in the upper part of the bag over the air? (Gautam) Yes, Bhante ! It will. (Bhagavan) On the basis of this example it is said that Lok-sthiti (structure of universe) is eight tiered... and so on up to... souls are bonded (samgrihit) by karma.
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[ ३ ] से जहा वा केई पुरिसे वत्थिमाडोवेति, आडोवित्ता कडीए बंधति, बंधित्ता अत्थाहमतारमपोरु 5 सियंसि उदगंसि ओगाहेज्जा से नूणं गोतमा ! से पुरिसे तस्स आउयायस्स उवरिमतले चिट्ठति ? हंता चिट्ठति ।
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एवं वा अट्ठविहा लोयट्ठिती पण्णत्ता जाव जीवा कम्मसंगहिता ।
[ ३ ] अथवा हे गौतम ! कोई पुरुष चमड़े की उस मशक को हवा से फुलाकर अपनी कमर पर बाँध ले, फिर वह पुरुष अथाह, दुस्तर और पुरुष - परिमाण से (जिसमें पुरुष मस्तक तक डूब जाये, 5
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भगवतीसूत्र (१)
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Bhagavati Sutra (1)
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