________________
895555555555555555555555555555555E
卐क)555555555555555555555555555555558
म २४. इस प्रकार ऊपर के एक-एक (स्थान) का संयोग करते हुए और नीचे का जो-जो स्थान हो, !
उसे छोड़ते हुए पूर्ववत् समझना चाहिए, यावत् अतीत और अनागत काल और फिर सर्वाद्धा के (सर्वकाल) तक, यावत् हे रोह ! इसमें कोई पूर्वापर का क्रम नहीं होता।
___हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कहकर रोह अनगार तप संयम * से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे।
24. In the same way each item in the aforesaid list should be linked with all the following items and dropping the preceding item up to the \ past time, the future time and all time (sarvaddha)... and so on up to... y 4 O Roha ! The order of preceding and following is not applicable to these. ___ “Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and
so on up to... ascetic Gautam resumed his activities. ॐ अष्टविध लोकस्थिति : सदृष्टान्त निरूपण LOR-STHITI WITH EXAMPLES + २५. [प्र. १] भंते त्ति भगवं गोतमे समणं जाव एवं वयासि-कतिविहा णं भंते ! लोयहिती ॐ पण्णता ?
[उ. ] गोयमा ! अट्ठविहा लोयट्ठिती पण्णत्ता। तं जहा-आगासपतिहिते वाते १, वातपतिहिते उदही + २, उदहिपतिहिता पुढवी ३, पुढवीपतिहिता तस-थावर पाणा ४, अजीवा जीवपतिट्ठिता ५, जीवा कम्मपतिहिता ६, अजीवा जीवसंगहिता ७, जीवा कम्मसंगहिता ८।
२५. [प्र. १ ] गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी से प्रश्न किया है-भगवन् ! लोक की स्थिति कितने प्रकार की है ? + [उ. ] गौतम ! लोक की स्थिति आठ प्रकार की है। यथा-आकाश के आधार पर वायु (तनुवात) टिका हुआ है; वायु के आधार पर उदधि है; उदधि के आधार पर पृथ्वी है; पृथ्वी के आधार पर त्रस और स्थावर जीव हैं; अजीव (शरीरादि पुद्गल) जीवों के आधार पर टिके हैं; (सकर्मक जीव) कर्म के आधार पर हैं; अजीवों को जीवों ने संग्रह (बद्ध) कर रखा है; जीवों को कर्मों ने संग्रह कर रखा है।
25. [Q. 1] Gautam Swami asks Shraman Bhagavan MahavirBhante ! How many tiered is lok-sthiti (structure of universe) ? ___ [Ans.] Gautam ! Lok-sthiti (structure of universe) is eight tiered-vayu f (air) is pratishthit (installed) on akash (space), udadhi (water) is installed on fi vayu, prithvi (earth) is installed on water, sthavar and tras pranis (immobile
and mobile beings) are installed on earth, ajiva (non-soul or matter) is installed on (dependent on) jivas (life), jivas (souls or living beings) are installed on (dependent on) karma, matter is accumulated (samgrahit) by souls and souls are bonded (samgrihit) by karma.
नाना
| प्रथम शतक : छठा उद्देशक
(153)
First Shatak : Sixth Lesson
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org