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ॐ विवेचन : अनुक्रम से होना या गिनना, जैसे-एक, दो, तीन, चार, पाँच; यह आनुपूर्वी है। एकदम उल्टे क्रम फ़ में, जैसे-पाँच, चार, तीन, दो, एक गिनना पश्चानुपूर्वी है। जिसमें एकदम उल्टा या एकदम सुल्टा क्रम न हो, - जैसे-दो, पाँच, चार, तीन आदि यह अनानुपूर्वी है। . ऊ क्रिया के सम्बन्ध में पाँच निष्कर्ष-(१) जीव प्राणातिपातादि की क्रिया स्वयं करते हैं, वे बिना किये नहीं + होतीं। (२) ये क्रियाएँ मन, वचन या काया से स्पृष्ट होती हैं। (३) ये क्रियाएँ करने से लगती हैं, बिना किये नहीं
लगती हैं। फिर भले ही वह क्रिया मिथ्यात्वादि किसी कारण से की जायें। (४) क्रियाएँ स्वयं करने से लगती हैं, फ़ दूसरे के (ईश्वर, काल आदि के) करने से नहीं लगतीं। (५) ये क्रियाएँ अनुक्रमपूर्वक कृत होती हैं। ___Elaboration-To count in a sequence like one, two, three, four, five and
so on is anupurvi. To count in reverse order like five, four, three, two and 1 one is pashchanupurvi. To count without any sequence or order like two, si five, three, four and one is ananupurvi.
__Five inferences about activities—(1) Beings perform activities like
killing of their own volition, they are not done without voluntarily doing. 4 (2) These activities are touched by mind, speech or body. (3) These 4
activities take effect only when done and not without being done. (4) These activities take effect only when done by self and not when done
by others (god or fate). (5) These activities are performed in a sequence. ऊ रोह अनगार का वर्णन ROHA ANAGAR
१२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतेवासी रोहे नाम अणगारे पगतिभद्दए पगतिमउए पगतिविणीते पगतिउवसंते पगतिपतणुकोह-माण-माय-लोभे मिउ-मद्दवसंपन्ने अल्लीणे भद्दए
विणीए समणस्स भगवतो महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्टोवगए संजमेणं तवसा फ़ अप्पाणं भावमाणे विहरति। तए णं से रोहे नामं अणगारे जातसड्ढे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी
१२. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के अन्तेवासी (शिष्य) रोह म नामक अनगार थे। वे प्रकृति से भद्र, मृदु (कोमल), विनीत, उपशान्त, अल्प क्रोध, मान, माया और
लोभ वाले, अत्यन्त निरहंकारता-सम्पन्न, गुरु-भक्ति में लीन, किसी को संताप न पहुँचाने वाले, ॐ विनयमूर्ति थे। वे रोह अनगार ऊर्ध्वजानु (घुटने ऊपर करके) और नीचे की ओर सिर झुकाए हुए, 5 ध्यानरूपी कोष्ठक में प्रविष्ट, संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए श्रमण भगवान महावीर के
समीप विचरते थे। तत्पश्चात् वह रोह अनगार के मन में श्रद्धा, संशय, कुतूहल आदि उत्पन्न होने पर 9 भगवान की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले____12. During that period of time there was an ascetic disciple of Bhagavan Mahavir whose name was Roha. By nature he was noble (bhadra), gentle (mridu), polite (vineet) and serene (upashant). He had mere traces of anger, conceit, deceit and greed. He was completely free of vanity. He was engrossed in devotion of his guru. He was conscious about
भगवतीसूत्र (१)
(148)
Bhagavati Sutra (1)
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