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________________ फ्र के विशिष्ट ज्ञानी या अनुभवी परिव्राजकों, तापसों या मुनियों के पास निःसंकोच पहुँच जाते और उनसे 5 ज्ञानचर्चा करते थे, और अगर कोई सत्य-तथ्य उपादेय होता तो वह उसे मुक्तभाव से स्वीकारते थे । प्रस्तुत आगम में वर्णित ऐसे अनेक प्रसंगों से उस युग की धार्मिक उदारता और सहिष्णुता का वास्तविक परिचय प्राप्त होता है। यह वर्णन आज के धर्म-सम्प्रदायों के लिए दिशादर्शक है। 255 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 559 555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 56 57 5555952 卐 इस आगम में विषय का प्रतिपादन सर्वत्र अनेकान्त दृष्टि से हुआ है। में उदाहरणस्वरूप - इस सूत्र में तत्त्व विद्या का प्रारम्भ 'चलमाणे चलिए' - इस सूत्र पद से हुआ है। 5 अर्थात् जो चलित हो चुका, वह चल गया ऐसा माना जा सकता है। आचार्य अभयदेव सूरि ने टीका इस पद की निश्चयनय और व्यवहारनय की दृष्टि से व्याख्या की है। उनका कहना है व्यवहारनय अनुसार चलित को ही 'चलित' कहा जा सकता है और निश्चयनय के अनुसार 'चलमान' को 'चलित' कहा जा सकता है। भी फ्र 卐 इस प्रकार अनेक जटिल और विवादास्पद प्रश्नों का उत्तर भगवान ने दोनों नयों को सामने रखकर 5 अनेकान्त दृष्टि से दिया है। 卐 फ्र 卐 卐 प्रसिद्ध तार्किक आचार्य श्री सिद्धसेन सूरि ने लिखा है- "भगवान महावीर की सर्वज्ञता को सिद्ध 5 करने के लिए अनेक प्रमाणों की कोई आवश्यकता नहीं है, उनके द्वारा प्रतिपादित 'षड्जीव निकाय' का सिद्धान्त ही उनकी सर्वज्ञता का अकाट्य प्रमाण है। क्योंकि संसार के अन्य किसी भी दार्शनिक ने 卐 षड्जीव निकाय का इतना विस्तृत और सटीक वर्णन आज तक नहीं किया है, जितना भगवान महावीर 5 ने किया है ।" (द्वात्रिंशिका १ / १३) 卐 Jain Education International 卐 उदाहरण के रूप में भगवान महावीर ने छह जीव निकाय का जो वर्णन किया है उनमें 'त्रस जीव निकाय ' तो प्रत्यक्ष सिद्ध है ही । वनस्पति निकाय के जीव अब विज्ञान को भी स्वीकार करने पड़े हैं। पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु इन चार निकायों के जीव अब तक विज्ञान द्वारा पूर्णतया स्वीकृत नहीं हुए हैं, परन्तु जो अनुसंधान व प्रयोग चल रहे हैं, उनसे सम्भव है, एक दिन विज्ञान के इनमें भी जीव या चेतना को स्वीकारना पड़े। भगवान महावीर ने इन जीवों का अस्तित्व सिद्ध करने के लिए उन जीवों का 5 जीवनमान, आहार, श्वास, संज्ञाएँ आदि अनेक सूक्ष्म विषयों का विस्तृत प्रतिपादन किया है। भगवान महावीर ने वनस्पति में दस प्रकार की संज्ञाएँ बताई हैं- आहार, भय, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, फ लोभ, ओघ और लोकसंज्ञा । आज विज्ञान को भी वनस्पति में इन संज्ञाओं को स्वीकार करना पड़ा है। 卐 卐 (11) For Private & Personal Use Only सुप्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक श्री जगदीशचन्द्र बसु ने अपने परीक्षणों द्वारा यह सिद्ध कर दिया था कि वनस्पति क्रोध और प्रेम भी प्रदर्शित करती है। स्नेहपूर्ण व्यवहार से वह पुलकित हो जाती है और 5 घृणापूर्ण दुर्व्यवहार से वह मुरझा जाती है। श्री बसु के प्रस्तुत परीक्षण को समस्त वैज्ञानिक जगत् ने स्वीकृत कर लिया है। प्रस्तुत आगम में वनस्पतिकाय में १० संज्ञाएँ बताई गई हैं। इन संज्ञाओं के रहते वनस्पति आदि वही व्यवहार अस्पष्ट रूप से करती हैं जिन्हें मानव स्पष्ट रूप से करता है। इसी प्रकार पृथ्वी में भी जीवत्व शक्ति है, इस सम्भावना की ओर प्राकृतिक चिकित्सक एवं वैज्ञानिक अग्रसर हो रहे हैं। सुप्रसिद्ध भूगर्भ वैज्ञानिक फ्रांसिस अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Ten Years Under Earth” में दसवर्षीय विकट भूगर्भयात्रा के संस्मरणों में लिखते हैं- "मैंने अपनी इन विविध 5 卐 卐 卐 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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