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यात्राओं के दौरान पृथ्वी के ऐसे-ऐसे स्वरूप देखे हैं, जो आधुनिक पदार्थविज्ञान के विरुद्ध थे। वे ॐ स्वरूप वर्तमान वैज्ञानिक सुनिश्चित नियमों द्वारा समझाये नहीं जा सकते।" अन्त में वे स्पष्ट लिखते हैं5 "तो क्या प्राचीन विद्वानों ने पृथ्वी में जो जीवत्व शक्ति की कल्पना की थी, वह सत्य है?' ॐ इसी प्रकार जैनदर्शन पानी की एक बूंद में असंख्यात जीव मानता है। वर्तमान वैज्ञानिकों ने
माइक्रोस्कोप के द्वारा पानी की बूंद का सूक्ष्म निरीक्षण करके अगणित सूक्ष्म प्राणियों का अस्तित्व स्वीकार किया है। जैन जीवविज्ञान इससे अब भी बहुत आगे है। ___आधुनिक वैज्ञानिकों ने अगणित परीक्षणों द्वारा जैनदर्शन के इस सिद्धान्त को निरपवाद रूप से सत्य पाया है कि कोई भी पुद्गल (Matter) नष्ट नहीं होता, वह दूसरे रूप (Form) में बदल जाता है।
भगवान महावीर द्वारा भगवती सूत्र में पुद्गल की अपरिमेय शक्ति के सम्बन्ध में प्रतिपादित यह ॥ तथ्य आधुनिक विज्ञान से पूर्णतः समर्थित है कि “विशिष्ट पुद्गलों में, जैसे तैजस् पुद्गल में, अंग, बंग, कलिंग आदि १६ देशों को विध्वंस करने की शक्ति विद्यमान है।" __इसी प्रकार नर-संयोग के बिना ही नारी का गर्भ-धारण, गर्भ-स्थानान्तरण आदि सैकड़ों विषय
प्रस्तुत आगम में प्रतिपादित हैं, जिन्हें सामान्य बुद्धि ग्रहण नहीं कर सकती, परन्तु आधुनिक विज्ञान ने ॐ नूतन शोधों द्वारा परीक्षण करके ऐसे अधिकांश तथ्य स्वीकृत कर लिए हैं, धीरे-धीरे शेष विषयों को भी परीक्षण करके स्वीकृत कर लेगा. ऐसी आशा है।
प्रस्तुत आगम में षड्द्रव्यात्मक लोक (जगत्) को अनादि एवं शाश्वत बताया गया है। आधुनिक विज्ञान ॐ भी जगत् (जीव-अजीवात्मक) की कब सृष्टि हुई, इस विषय में जैनदर्शन के निकट पहुँच गया है। प्रसिद्ध जीवविज्ञानवेत्ता जे. बी. एच. हाल्डेन का मन्तव्य है कि “मेरे विचार में जगत् की कोई आदि नहीं है।'
भारतीय धर्मों के पाश्चात्य विद्वान् डॉ. वाल्टर शुबिंग ने लिखा है-“जीव-अजीव और ॥ पंचास्तिकाय का सिद्धान्त भगवान महावीर के मौलिक चिन्तन की देन है।" भगवती सूत्र में जीव और म पुद्गल का जितना और सर्वांग निरूपण है, वह अन्य प्राचीन धर्मग्रन्थों में सुलभ नहीं है।
प्रस्तुत आगम भगवान महावीर के दर्शन तथा तत्त्वविद्या का प्रतिनिधिशास्त्र है। डॉ. शुब्रिग भगवती सूत्र को पढ़कर इतने प्रभावित हुए हैं कि वे बड़ी मार्मिक भाषा में लिखते हैं___ “महावीर एक सुव्यवस्थित (निरूपण के) पुरस्कर्ता हैं। उन्होंने अपने निरूपणों में प्रकृति में पाये , जाने वाले तत्त्वों को स्थान दिया, जैसा कि विआहपण्णत्ती के कुछ अवतरणों से स्पष्टतया परिलक्षित होता है। उदाहरणार्थ-रायगिह (राजगृह) के समीपस्थ उष्ण जल स्रोत, जहाँ वे स्वयं अवश्य गये होंगे, के 5 सम्बन्ध में उनकी व्याख्या (९४), वायु सम्बन्धी उनका सिद्धान्त (११०) तथा अग्नि एवं वायु जीवों के 5 सामुदायिक जीवन (१०५) आदि के विषय में उनकी व्याख्या। आकाश में उड़ने वाले पदार्थ की गति है मन्द होती जाती है (विआहपण्णत्ती १७६-बी; जीवाभिगम ३७४-बी)-यह निष्कर्ष महावीर ने सम्भवतः गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के आधार पर निकाला होगा। इसी प्रकार, एक सरपट चौकड़ी भरते ॥ हुए अश्व के हृदय और यकृत के बीच उद्भत 'कव्वडय' नामक वाय के द्वारा 'ख-खु' की आवाज, की उत्पत्ति (विआहपण्णत्ती ४९९-बी) को भी हम विस्मृत नहीं कर सकते। इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि प्राचीन भारत के जिन मनीषियों के विषय में हमें जानकारी है उन सबमें सर्वाधिक 5
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