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________________ फ्र 卐 फ्र 695559555555 565 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 59595952 க 卐 से अदृश्य है तथापि शरीर के माध्यम से होने वाली चैतन्यक्रिया के द्वारा वह दृश्य है। पुद्गलास्तिकाय 5 卐 卐 卐 தததததததததததி********************தமிழில் 卐 वर्तमान वैज्ञानिकों ने आकाश को 'स्पेस' के रूप में स्वीकार कर लिया है। जीवास्तिकाय भी अमूर्त होने 卐 5 卐 5 सर्वज्ञ - सर्वदर्शी भगवान महावीर ने तथा जैनतत्त्वज्ञों ने स्वर्ग-नरक को विशेष महत्त्व दिया है, 5 इसके पीछे महान् गूढ़ रहस्य छिपा है। वह यह है कि यदि आत्मा को हम अविनाशी और शाश्वत सत्तात्मक मानते हैं तो उसके चैतन्य स्वरूप, जड़ संयोग से पार्थिव जीव स्वरूप और गुणात्मक विकासहास को समझ पाने के लिए हमें स्वर्ग-नरक को भी मानना होगा। स्वर्ग-नरक से सम्बन्धित वर्णन को निकाल दिया जायेगा तो आत्मवाद, कर्मवाद, लोकवाद, क्रियावाद एवं मुक्तिवाद आदि सभी सिद्धान्त अपनी उपयोगिता देंगे। जहाँ तक वैज्ञानिकता का प्रश्न है, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विज्ञान ज्ञान के निरन्तर विकास की तथा खोज की राह है और चिन्तन, शोध, अन्वेषण, गणित, कल्पना आदि उसके उपकरण हैं। जो कल कल्पना माना जाता था वह आज यथार्थ बन चुका है। जिसे हम आज कल्पना समझते हैं वह कल के यथार्थ की सम्भावना भी हो सकती है। आगमों की अवधारणा के अनुसार स्वर्ग-नरक भी हमारे तिर्यग्लोकस्थित भूमण्डल के सदृश ही क्रमशः ऊर्ध्वलोक और अधोलोक 5 के अंग हैं। अतिशय पुण्य और अतिशय पाप से युक्त आत्मा को अपने कृतकर्मों का फल भोगने के लिए स्वर्ग या नरक में गये बिना कोई चारा नहीं । अतः सर्वज्ञ-सर्वदर्शी पुरुष जगत् के अधिकांश भाग 5 से युक्त क्षेत्र का वर्णन किये बिना कैसे रह सकते थे ? 5 5 5 卐 卐 है। इसके अतिरिक्त जीव और पुद्गल के संयोग से दृष्टिगोचर होने वाली विविधता का जितना विशद विवरण प्रस्तुत आगम में है, उतना अन्य भारतीय दर्शन या धर्मग्रन्थों में नहीं मिलता है। मूर्त होने से दृश्य है । इस प्रकार प्रस्तुत आगम में किया गया प्रतिपादन वैज्ञानिक तथ्यों के अतीव निकट 5 कतिपय आधुनिक शिक्षित व्यक्ति भगवती सूत्र में उक्त स्वर्ग-नरक के वर्णन को कपोल कल्पित कहते नहीं हिचकिचाते। उनका आक्षेप है कि "भगवती सूत्र का आधे से अधिक भाग स्वर्ग-नरक से 5 सम्बन्धित वर्णनों से भरा हुआ है, इस ज्ञान का जीवन में क्या महत्त्व या उपयोग है ?" है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टीन का सापेक्षवाद का सिद्धान्त गणित का ही तो चमत्कार है । गणित जगत् भगवती सूत्र, अन्य जैनागमों की तरह न तो उपदेशात्मक ग्रन्थ है और न केवल सैद्धान्तिक ग्रन्थ है । इसे हम विश्लेषणात्मक ग्रन्थ कह सकते हैं। दूसरे शब्दों में इसे सिद्धान्तों का गणित कहा जा सकता 5 के प्रस्तुत आगम से यह भी ज्ञात होता है कि उस युग में अनेक धर्म-सम्प्रदाय होते हुए भी उनमें 5 साम्प्रदायिक कट्टरता अधिक नहीं होती थी । एक धर्मतीर्थ के परिव्राजक, तापस और मुनि दूसरे धर्मतीर्थ 卐 समस्त आविष्कारों का आवश्यक अंग है। अतः भगवती सूत्र में गणित सिद्धान्तों का बहुत ही गहनता एवं सूक्ष्मता से प्रतिपादन किया गया है। जिसे जैनसिद्धान्त एवं कर्मग्रन्थों या तत्त्वों का पर्याप्त फ ज्ञान नहीं है, उसके लिए भगवती सूत्र में प्रतिपादित तात्त्विक विषयों की थाह पाना और उनका रसास्वादन करना अत्यन्त कठिन है। इसके अतिरिक्त उस युग के इतिहास, भूगोल, समाज और संस्कृति, राजनीति और धर्मसंस्थाओं आदि का जो यथातथ्य विश्लेषण प्रस्तुत आगम में है, वह सर्व साधारण पाठकों एवं शोधकर्त्ताओं के 卐 குழநதமிழக தமிழதமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிபி लिए अतीव महत्त्वपूर्ण है। छत्तीस हजार प्रश्नोत्तरों में आध्यात्मिक ज्ञान की छटा अद्वितीय है। ( 10 ) கதகத்தததததததததததததமிழ******தமிழமிழித Jain Education International For Private & Personal Use Only 卐 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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