SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 9555555555555555555555555555155555558 (४) परलोकखण्ड-देवलोक, नरक आदि से सम्बन्धित समग्र वर्णन; नरकभूमियों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श का तथा नारकों की लेश्या, कर्मबन्ध, आयु, स्थिति, वेदना आदि का तथा देवलोकों की म संख्या, वहाँ की भूमि, परिस्थिति देव-देवियों की विविध जातियाँ, उपजातियाँ, उनके निवास-स्थान, की लेश्या, आयु, कर्मबन्ध, स्थिति, सुखभोग आदि का विस्तृत वर्णन। सिद्धगति एवं सिद्धों का वर्णन। (५) भूगोल-लोक, अलोक, भरतादि क्षेत्र, कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक क्षेत्र, वहाँ रहने वाले प्राणियों की गति, स्थिति, लेश्या, कर्मबन्ध, नदियाँ, पर्वत, कूट, समुद्र आदि का वर्णन। (६) खगोल-सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, तारे, अन्धकार, प्रकाश, तमस्काय, कृष्णराजि आदि का वर्णन। (७) गणितशास्त्र-एकसंयोगी, द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी भंग आदि, प्रवेशनक राशि, संख्यात, असंख्यात, अनन्त, पल्योपम, सगारोपम, कालचक्र आदि। (८) गर्भशास्त्र-गर्भगत जीव के आहार, विहार, नीहार, अंगोपांग, जन्म इत्यादि वर्णन। (९) चरित्रखण्ड-श्रमण भगवान महावीर के सम्पर्क में आने वाले अनेक तापसों, परिव्राजकों, श्रावकों, श्राविकाओं, श्रमणों, निर्ग्रन्थों, अन्यतीर्थिकों, पार्वापत्य श्रमणों आदि के पूर्व जीवन एवं परिवर्तनोत्तर जीवन का वर्णन। (१०) विविध-कतहलजनक प्रश्न. राजगह के गर्म पानी के स्रोत. अश्व-ध्वनि. देवों की ऊर्ध्वअधोगमन शक्ति, विविध वैक्रिय शक्ति के रूप, आशीविष, स्वप्न, मेघ, वृष्टि आदि के वर्णन। __व्याख्याप्रज्ञप्ति के अध्ययन ‘शतक' के नाम से प्रसिद्ध हैं। यहाँ 'शतक' शब्द से सौ की संख्या का प्र कोई सम्बन्ध नहीं है। यह अध्ययन के अर्थ में रूढ़ है। प्रत्येक शतक में उद्देशक रूप उपविभाग हैं। ४१ शतकों में विभक्त विशालकाय भगवती सूत्र में श्रमण भगवान महावीर के स्वयं के जीवन की, . गणधर गौतम आदि उनके शिष्य वर्ग की तथा भक्तों, गृहस्थों, उपासकों, उपासिकाओं, अन्यतीर्थिकों के और उनकी मान्यताओं की विस्तृत जानकारी मिलती है। आजीवक संघ के आचार्य गोशालक के सम्बन्ध में इसमें विस्तृत और प्रामाणिक जानकारी प्राप्त होती है। यत्र-तत्र पुरुषादानीय भगवान के पार्श्वनाथ के अनुयायी साधु-श्रावकों का तथा उनके चातुर्याम धर्म का एवं चातुर्याम धर्म के बदले के पंचमहाव्रत रूप धर्म स्वीकार करने का विशद उल्लेख भी प्रस्तुत आगम में मिलता है। इसमें सम्राट कूणिक और वैशाली गणतंत्र के अधिनायक महाराज चेटक के बीच जो महाशिलाकण्टक और ॥ रथमूशल महासंग्राम हुए तथा इन दोनों महायुद्धों में जो लोमहर्षक नर-संहार हुआ, उसका विस्तृत के मार्मिक एवं चौंका देने वाला वर्णन भी अंकित है। __ ऐतिहासिक दृष्टि से आजीवक संघ के आचार्य मंखली गोशालक, जमालि, शिवराजर्षि, स्कन्दक परिव्राजक, तामली तापस आदि का वर्णन अत्यन्त रोचक है। तत्त्वचर्चा की दृष्टि से जयन्ती श्राविका, मदुक श्रमणोपासक, रोक अनगार, सोमिल ब्राह्मण, भगवान पार्श्व के शिष्य कालास्यवेशीपुत्र, तुंगिका ॥ नगरी के श्रावक आदि प्रकरण बहुत ही मननीय हैं। इक्कीस से लेकर तेईसवें शतक तक वनस्पतियों का जो वर्गीकरण किया गया है, वह अद्भुत है। वनस्पतिविज्ञान के लिए भी मार्गदर्शक है। पंचास्तिकाय के प्रतिपादन में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, ये तीनों अमूर्त होने से अदृश्य हैं, म 3555555555555555555555555555555555555555 (9) 55555555555555555555))))))))) ) ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy