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ॐ मनुष्यों के दस द्वार ATTRIBUTES OF HUMAN BEINGS
३५. मणुस्सा वि। जेहिं ठाणेहिं नेरइयाणं असीति भंगा तेहिं ठाणेहिं मणुस्साण वि असीतिं भंगा भाणियव्वा। जेसु ठाणेसु सत्तावीसा तेसु अभंगयं, नवरं मणुस्साणं अब्भहियं-जहनियाए ठिईए आहारए य
असीति भंगा। म ३५. नारक जीवों में जिन-जिन स्थानों में अस्सी भंग कहे हैं, उन-उन स्थानों में मनुष्यों के भी
अस्सी भंग कहने चाहिए। नारक जीवों में जिन-जिन स्थानों में सत्ताईस भंग कहे हैं उनमें मनुष्यों में ॐ अभंगक कहना चाहिए। विशेषता यह है कि मनुष्यों के जघन्य स्थिति में और आहारक शरीर में अस्सी फ + भंग होते हैं और यही नैरयिकों की अपेक्षा मनुष्यों में अधिक है। i 35. For attributes having eighty alternatives in case of infernal
beings, there are eighty alternatives in case of human beings also and for attributes having twenty seven alternatives in case of infernal beings, there are twenty seven alternatives in case of human beings also. The difference is that for the minimum life-span and aharak sharira
(telemigratory body) there are eighty alternatives. ॐ वाणव्यन्तरों आदि के दस द्वार ATTRIBUTES OF VANAVYANTAR AND OTHERS
३६. वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया जहा भवणवासी (सु. २९) नवरं णाणत्तं जाणियव् जं जस्स; ॐ जाव अणुत्तरा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ।
॥ पढमे सए : पंचमो उद्देसो समत्तो ॥ म ३६. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का कथन भवनपति देवों के समान समझना
चाहिए। विशेषता यह है कि जो जिसका नानात्व-भिन्नत्व है, वह जान लेना चाहिए, यावत् अनुत्तरविमान तक कहना चाहिए। ___ 'भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है'; ऐसा कहकर यावत् गौतम स्वामी विचरण करते हैं।
36. Vanavyantar (interstitial), Jyotishk (stellar) and Vaimanik gods (vehicular) follow the same pattern as that of Bhavan-pati gods (abode dwelling). The difference is that their uniqueness should be noted. This goes up to Anuttar Vimaan (the highest celestial vehicle).
"Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... an 卐 so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
विवेचन : भवनपति देवों की प्रकृति नारकों की प्रकृति से भिन्न-नरक के जीवों में क्रोध अधिक होता है, वहाँ ॐ भवनपति आदि देवों में लोभ की अधिकता होती है। इसलिए नारकों में जहाँ २७ भंग-क्रोध, मान, माया, लोभ है इस क्रम से कहे गये थे, वहाँ देवों में इससे विपरीत क्रम से कहना चाहिए, यथा-लोभ, माया, मान और क्रोध। 卐
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| भगवतीसूत्र (१)
(138)
Bhagavati Sutra (1)
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