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fi 32. [1] The same is applicable to Apkaya (water-bodied beings). [2] In case 4 fi of Tejaskaya (fire-bodied beings) and Vayukaya (air-bodied beings) there is fi absence of alternatives for all attributes. [3] What is applicable to earth__bodied beings is also applicable to Vanaspatikaya (plant-bodied beings). विकलेन्द्रियों के दस द्वार ATTRIBUTES OF VIKALENDRIYAS
३३. बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं जेहिं ठाणेहिं नेरतियाणं असीइ भंगा तेहिं ठाणेहिं असीइं चेव। नवरं अब्भहिया सम्मत्ते, आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे य, एएहिं असीइ भंगा; जेहिं ठाणेहिं नेरतियाणं सत्तावीसं भंगा तेसु ठाणेसु सब्बेसु अभंगये।
३३. जिन स्थानों में नैरयिक जीवों के अस्सी भंग कहे गये हैं, उन स्थानों में द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और 卐 चतुरिन्द्रिय जीवों के भी अस्सी भंग होते हैं। विशेषता यह है कि सम्यक्त्व (सम्यग्दृष्टि), आभिनिबोधिक - , ज्ञान और श्रुतज्ञान-इन तीनों स्थानों में भी द्वीन्द्रिय आदि जीवों के अस्सी भंग होते हैं, इतनी बात
नारक जीवों से अधिक है तथा जिन स्थानों में नारक जीवों के सत्ताईस भंग कहे हैं, इन सभी स्थानों में 5 यहाँ अभंगक है, अर्थात्-कोई विकल्प नहीं होते।
33. Where eighty alternatives (bhang) have been stated for attributes of infernal beings, for the same attributes eighty alternatives should also be stated with regard to two-sensed, three-sensed and four-sensed beings.
Difference is that even for the three attributes of righteousness, sensory f knowledge and scriptural knowledge there are eighty alternatives in case
of two to four sensed beings. The other difference is that for attributes f having twenty seven alternatives in case of infernal beings, there is
absence of alternatives (abhangak) in case of two to four sensed b म तिर्यंच पंचेन्द्रियों के दस द्वार ATTRIBUTES OF TIRYANCH PANCHENDRIYA
३४. पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया तहा भाणियव्वा, नवरं जेहिं सत्तावीसं भंगा तेहिं : अभंगयं कायव्वं । जत्थ असीति तत्थ असीतिं चेव।
३४. जैसा नैरयिकों के विषय में कहा, वैसा ही पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों के विषय में कहना चाहिए। विशेषता यह है कि जिन-जिन स्थानों में नारक-जीवों के सत्ताईस भंग कहे हैं, उन-उन स्थानों में यहाँ अभंगक कहना चाहिए और जिन स्थानों में नारकों के अस्सी भंग कहे हैं, उन-उन स्थानों में पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों के भी अस्सी भंग कहने चाहिए।
34. What has been stated for infernal beings should be repeated for tiryanch panchendriya (five sensed animals). The difference is that for attributes having twenty seven alternatives in case of infernal beings, there is absence of alternatives (abhangak) in case of five sensed animals and for attributes having eighty alternatives in case of infernal beings, there are eighty alternatives in case of five sensed animals as well.
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प्रथम शतक : पंचम उद्देशक
(137)
First Shatak: Fifth Lesson
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