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தததததததததததி***********************மிழில்
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S (krodhopayukta), inclination of conceit (maanopayukta), inclination of 5
5 deceit (maayopayukta) and inclination of greed (lobhopayukta ) ?
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[Ans.] Gautam ! Eighty alternatives should be stated for minimum physical dimension (as stated in case of life-span). The same is true for two Pradesh more than the minimum... and so on up to... a life-span of
countable Pradesh more than the minimum. For those with a life-span of innumerable Pradesh more than the minimum, right up to the maximum, only twenty seven alternatives should be stated (as stated in connection with life-span).
विवेचन : अवगाहनास्थान - जिस जीव का जितना लम्बा-चौड़ा शरीर होता है, वह उसकी अवगाहना है। जिस क्षेत्र में जो जीव जितने आकाश-प्रदेशों को रोककर रहता है, उतने आधारभूत तद् परिमाण क्षेत्र को भी अवगाहना कहते हैं ।
उत्कृष्ट अवगाहना–प्रथम नरक की उत्कृष्ट अवगाहना ७ धनुष, ३ हाथ, ६ अंगुल होती है, इससे आगे के 5 नरकों में अवगाहना दुगुनी दुगुनी होती है। अर्थात् शर्कराप्रभा में १५ धनुष, २ हाथ, १२ अंगुल की; बालुकाप्रभा में ३१ धनुष, १ हाथ की, पंकप्रभा
६२ धनुष, २ हाथ की; धूमप्रभा में १२५ धनुष की; धनुष की उत्कृष्ट अवगाहना होती है । जघन्य स्थिति तथा
तमः प्रभा में २५० धनुष की
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तमस्तमः प्रभा में ५००
5 जघन्य अवगाहना के भंगों में अन्तर - जघन्य स्थिति वाले नारक जब तक जघन्य अवगाहना वाले रहते हैं, तब तक
5 उनकी अवगाहना के ८० भंग ही होते हैं; क्योंकि जघन्य अवगाहना उत्पत्ति के समय ही होती है। जघन्य स्थिति
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वाले जिन नैरयिकों के २७ भंग कहे हैं, वे जधन्य अवगाहना का उल्लंघन कर चुके हैं, उनकी अवगाहना जघन्य नहीं होती। इसलिए उनमें २७ ही भंग होते हैं।
जघन्य अवगाहना से लेकर संख्यातप्रदेश अधिक की अवगाहना वाले जीव नरक में सदा नहीं मिलते,
इसलिए उनमें ८० भंग कहे गये हैं, किन्तु जघन्य अवगाहना से असंख्यातप्रदेश अधिक की अवगाहना वाले
5 जीव, नरक में अधिक ही पाये जाते हैं; इसलिए उनमें २७ ही भंग होते हैं। (वृत्ति, पत्रांक ७१)
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Elaboration-Avagahana-The length and breadth of the body of a
being or its physical dimension is called avagahana. In other words the space occupied by a being in terms of space-points (pradesh) is called 5 avagahana.
भगवतीसूत्र (१)
फ
In the first hell the maximum dimension is 7 Dhanush (a linear 5 measure equivalent to four cubits), 3 Haath (cubit), 6 Angul (breadth of a finger). In the following hells it is doubled for every progressive hell. In Sharkara-prabha (second hell) it is 15 Dhanush, 2 Haath, 12 Angul. In 5 Baluka-prabha (third hell) it is 31 Dhanush, 1 Haath. In Pankaprabha 5 फ (fourth hell ) it is 62 Dhanush, 2 Haath. In Dhoom-prabha ( fifth hell) it is 125 Dhanush. In Tamah-prabha (sixth hell) it is 250 Dhanush. In
5 Tamastamah-prabha ( seventh hell) it is 500 Dhanush. Difference 5
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Bhagavati Sutra (1)
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(124)
கமிமிமிமிமிமிமிமிமிமி*********************மிக
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